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________________ अथ पाधिकार २१३ આ સ્તંભને ઠેકી ચઢાવીને દોઢીયા ઉદયવાળા મંડપ કરવા. તેને ફરતા આઠે तोरणा १२वा. २० ४७ थी ५४. · अब मैं छः महामंडपोंके नाम क्रमसे कहता हूँ जो वृक्षार्णवमें उनके मान स्वरूपों कहे हुए हैं । १ शिवनाद २ हरिनाद ३ ब्रह्मनाद ४ रविनाद ५ सिंहनाद ६ मेघनाद इस तरह छः महामंडपों को जानना । इन शिवनादादि मंडपों को ढाई या तीन भूमि उदयके विशेष करके करना ( इससे भी ऊँचे होते हैं । ) इन मंडपों सर्व देवोंको करना । परंतु विशेषकर जिसके जैसे नामके देवोंको करना । उस प्रासादकी तरह भद्ररथादि अंगवाले ( खुले मंडप ) करना । इन मंडपोंको प्रासादके जैसा पीठकर उसके घर वेदिका कक्षायुक्त या खुले स्तंभ भी कर सकते हैं। मंडप मध्यके आठ आठ स्तंभोंको ब्रह्मनाद તુંહોયગ સ્તમ शिवनाद વેંતમા रविनाद B तुला स्तंभ २८६ ओ. मेघनादादि षड् महामंडप (૨૦) આ છ એ મહામંડપનુ વિશેષ વિભાગથી ભદ્ર પ્રતિભદ્ર રથ ઉપરાદિ અગ સાથે શિલ્પના મહામથ વૃક્ષાૌવના અધ્યાય ૧૦૨ માં વિગતથી આપેલું છે. અહીં સંક્ષિપ્ત છે. શિવનાદ ભાગ આઠ સ્તંભ ૨૮, હરિનાદ ભાગ ૧૬, સ્તંભો ૫૬, બ્રહ્મનાદ ભાગ ૨૪,
SR No.008421
Book TitleKshirarnava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherBalwantrai Sompura
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Art, & Culture
File Size13 MB
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