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________________ अथ स्तंभ मान लक्षणाधिकार . . મહાપ્રાસાદના કુંભી અને સ્તંભે ઘટપલ્લવોથી અલંકૃત શેભિત કરવા ઈલિકા તેરણ યુક્ત કે મદળવાળા સુંદર સ્તંભે કરવા. દેવાંગનાઓ=દેવકન્યા अपराजित सूत्र १८४में स्तंभोंकी आकृतिके स्वरूप जिस प्रकार दिये है। अ० १५ में पृथक् पृथक् नामों और स्वरूपों दिये है। आकृति - चोरस - अष्ठांश – सोलांश --- बत्तीसांश -- गोल मत्स्य पुराण - रूचक -- वज्र -द्विवज्रक -- प्रलीनक --- वृत्त मानसार - ब्रह्मकांत ---विष्णुकांत - रुद्रकांत --- स्कंधकांत ---- पंच-छहांश पृथक् पृथक् ग्रैंथों में नाम और स्वरूप भिन्न भिन्न दिये हैं। स्तंभ के घाट अनेक प्रकारके होते हैं। सादे-नकशीवाले रूपयाले भी होते हैं। अक स्तंभमें नीचे भद्रक उसके उपर अठांश और उपर गोलवलीके उपर छः ईचका लगभग पट्टा अठांशका कर उसमें प्रास मुख या फूलों करते हैं। नीचे गोल भागमें कणी स्तंभके बंधको कर खडी सांकल टोकनी या पुष्पका तोरा बनाते हैं। सांकली, टोकरी, आध्यात्मिक रूपसे सुचक उसके घाट कहते हैं। जैसे जैसे घाटके स्तंभोंकी सुंदरत रचना कुशल शिल्पीयों अपने दिमागमेंसे उत्पन्न करते हैं । यद्यपि वह अशास्त्रीय तो नहीं है। बारहर्वी तेरहवीं सदीके स्थापत्यो में अवशेषोंम घटपल्लवयुक्त कलामय स्तंभों सुंदर लगते हैं। चारों कोनेमें कलामय पत्रोंका बिचमें घटकुंभकी आकृति कर कुंभीके नामको सार्थक किया हुआ देखने में आता है।। (3) मे स्तमो वयेना લાંબાગાળાના પાટની મજબુતાઈ कर्णाटक शैलीकी दर्पणयुक्त विधिचिता दवाङ्गना शोभा साथे खाने महा ४२वामा આવે છે. તે કમાન જેવું સુંદર દેખાય છે. તરણું કે કાચલાવાળા તોરણું કરતાં મદળની મજબુતાઈ વિશેષ રહે છે. તેરણની પુરાણી શૈલીનું સ્થાન કાલાવાળી પડદીવાળી ફમાતે લીધું. તે પાછલા કાળની કૃતિ છે. ધ્રુવ સૂત્રમાં સાદી કમાને પંદરમી સદી પછી HESH Ata AU) - श्रीजेश . नाजीवतिय CHANDULAL Sot
SR No.008421
Book TitleKshirarnava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherBalwantrai Sompura
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Art, & Culture
File Size13 MB
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