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________________ न MA । अथ देवता ह्युष्टि पदस्थापनाधिकार મૂર્તિની સ્થાપના કરવી. એથી બીજા પદે શુન્ય જાણવા. આ રીતે ગર્ભગૃહના અઠ્ઠાવીશ ભાગના મંડળમાં મૂર્તિ સ્થાપનાનો ક્રમ જાણુ. ૧૧ થી ૧૭. [ ] માં દીધેલ ૧૬ કલેક એક શુદ્ધ પ્રતિમાં જ ફક્ત આપેલ છે બીજી પ્રતમાં નથી, दूसरे भागमें ब्रह्मा, शालीग्राम, तीसरे भागमें नकुलीश (पाशुपत शव) चौथे भागमें सावित्री, पाँचवें .भागमें रूद्र, | छटे भागमें कार्तिक स्वामी, सातवें भागमें ब्रह्मा, आठवें | भागमें वासुदेव नवमें भागमें जनार्दन विष्णु स्वरूप, दशमा भागे विश्वरूप, ग्यारहवें भागमें अग्निदेव, बारहवें भागमें सूर्य, तेरहमें देवियाँ, चौदवें गणेश, पंदरमें ग्रहो, सोलहवें मातृकादेवी, सत्रहवें भागमें गणों, अठारहवें भागमें भैरव, उन्नीसवें भागमें क्षेत्रपाल, बीसवें भागमें यक्षराज, इक्कीसवें भागमें हनमानजी. बाईसवें भागमें मृगधोरेन्द्र, तेईसवें भागमें अघोरशिव, चौबीसवें भागमें दैत्य, पचिशा राक्षस, छब्बीसवें पिशाच, सत्ताबीसवें भागमें भूतकी मूर्तिकी स्थापना करना । इससे दूसरे पदोंको शून्य -SHOPAGAIB E जानना । इस तरह गर्भगळके 1 अट्ठाईश भागके मंडलोंमें मूर्तिस्थातोरण -गजसिंह बिरालिका युक्त अनिदेव । पनाका क्रम जानना । ११ से १७ [ ] कौसमें दीया हुआ १६ वे शोक शुद्ध प्रतिमें फक्त है। वर्तमान विद्वानोर्ष एक मतभेद प्रवर्तता है, दृष्टिसूत्र जो आया हो उसके खसरेज आँखकी किकीके मध्यका सूत्र एक सूत्र में रखना चाहिये। और उसे शिल्पी वर्ग: अनुसरता है। अभी जैन विद्वानों "सप्तमा सप्तमें "का अर्थ सातवेमें अर्थात् सातवेंकी:अंदर नीचे ऐसा अर्थ करते हैं। जब शिल्पियों सातवेंका सा वें ही जो विभाग आया हो वहां ही दृष्टि रखनेका मानते हैं। जैन विद्वानों उसमें ध्वज, गज, सिंह आय मीलानेकी व्यर्थ कोशिश करते हैं और दृष्टि निचा उतारने के लिये कहते हैं। परंतु यह आयमेल मण्डन सूत्रधारके सिवा कीसी भी पुराने ग्रंथमें आय मीलानेका कहा नहीं है। वृक्षार्णव अ. १४७ में दृष्टिस्त्रको एक वालाग्र भी न लोपरेके लिये कहते हैं। जो उसका लोप करे तो दोष कहा है। कार्य सिद्धि के समय शिल्पियोंको ऐसे मत मतान्तरके वितंडावादमें न उतरके जैसे विद्वानों अपना मतका आग्रह करे तब वैसा करना । १७ LEARRI ABAda
SR No.008421
Book TitleKshirarnava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherBalwantrai Sompura
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Art, & Culture
File Size13 MB
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