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________________ १२० क्षीरार्णव अ. ११० क्रमांक म. १२ चातुर्मुख प्रतिमाका प्रमाण कहते हैं। द्वार विस्तारके बराबर प्रतिमा रखना यह मध्यमान, आठवाँ भाग हीन रखना यह कनिष्ठमान, और विस्तारसे आठवाँ एक एक अंगुलकी वृद्धि करते जाना। यह मध्यभान है। आये हुए मानका बीसवाँ भाग बढ़ानेसे ज्येष्ठमान और बीसवें भागको हीन करनेसे कनिष्ठमान जानना। इस तरह आगे जो पहेला खड़ी प्रतिमाका मान कहा और यह दूसरा मान बैठी प्रतिमाका जानना। प्रासाद गज बैठी प्रतिमा मान अंगुल खड़ी प्रतिमा मान अंगुल प्रासाद गज बैठी प्रतिमा भान-अंगुल खड़ी प्रतिमा मान अंगुल प्रासाद बैठी प्रतिमा मान अंगुल खडी प्रतिमा मान अंगुल | गर्भ पंचाशकेत्र्यंशै ज्येष्ठे लिङ्ग तु मध्यगम् । नवाशे पंच भागं स्यादधि कनिष्ठादेय ॥ अ० १३॥ ગર્ભહના પાંચ ભાગ કરી ત્રણ ભાગના રાજલિંગની લંબાઈ જયેષ્ઠ માનની જાણવી તેના નવ ભાગ કરી પાંચ ભાગની લંબાઈનું લિંગ ઉદય મધ્યમાનનું અને ગર્ભગૃહના અધભાગે રાજલિંગનું ઉદય તે કનિષ્ઠમાન જાણવું. गर्भगृहके पाँच भाग कर तीन भागके राजलिङ्गको लम्बाई ज्येष्ठमानकी जानना। उसके नौ भाग कर पाँच भागकी लम्बाईके लिङ्ग उदयको मध्यमानका और गर्भगृहके आधे भागमें जो राजलिङ्गका उदय है उसे कनिष्ठमान जानना । गृहपूजा योग्य प्रतिमामान-आरंभ्यागुल उर्वं पर्यंते द्वादशाङ्गुलम् । गृहेषु प्रतिमा पूज्या नाधिके शश्यते बुधः ॥ એક આંગળથી બાર આંગળ સુધીની દેવમૂતિ ગૃહપૂજાને યોગ્ય જાણવી તેથી અધિક મેટી મૂતિ બુદ્ધિમાને ઘરપૂજામાં ન રાખવી (મસ્ય પુરાણમાં અંગુઠાના પર્વથી નવ આંગળ સુધીનું પ્રમાણ ગુહપૂજાને માટે આપેલું છે.) एक अंगुलसे बारह अंगुल तककी देधमूर्तिको गृहपूजाके योग्य जानमा। उससे अधिक बड़ी मूर्तिको बुद्धिसानको द्वारपूजामें न रखना चाहिये । (मत्स्य पुराणमें अंगुष्टके पर्वसे नौ अंगुल तकका प्रमाण गृहपूजाके लिये दिया है।)
SR No.008421
Book TitleKshirarnava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherBalwantrai Sompura
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Art, & Culture
File Size13 MB
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