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________________ गर्भगृह . E ताल ១៩. LOR) HE ॥ अथ गर्भगृहोदय-द्वारशाखा विभाग ।। क्षीरार्णव अ० १०९-(क्रमांक अ० ११) श्री विश्वकर्मा उवाच तस्याग्रे प्रवक्ष्यामि प्रमाणं गर्भगृहोचम। चतुरस्रमथायतं वृतंवृषा ___ याष्टकम् ॥१॥ गर्भव्यास षडांशस्य सपादो सार्द्धमेव च । पादार्धे तु यदा चैत्र जेष्ट ___ मध्यकन्यस ॥२॥ શ્રી વિશ્વકર્મા કહે છેહવે આગળ હું ઉત્તમ એવા ગર્ભગૃહના પ્રમાણે કહું છુંગર્ભગૃહ ૧ ચોરસ ૨ લંબ ચેરસ ૩ ગેળ ૪ લંબગોળ અને પ અષ્ટાશ્ર એમ પાંચ પ્રકારે થાય તે ઉપરાંત તેની પહોળાઈમાં (૧) છઠ્ઠો ભાગ उभेशन (२) सपायो या (3) દોઢ વધારી લાંબે કરવાથી જેષ્ઠ મધ્યમ અને કનિષ્ઠ માન बारानु शु. १-२. श्री विश्वकर्मा कहते हैं'अब आगे मैं उत्तम ऐसे गर्भगृहके' प्रमाण कहता हूँ। गर्भगृह चोरस, लम्बचोरस, गोल, लम्बगोल, और अष्टाः इस तरह पाँच प्रकारसे होता है, इसके अतिरिक्त उसकी चौडाईमें (१) छटा भाग मिलाकर या (२) सवाया (३) डेढा ऐसे गर्भगृह समचोरस बृत अष्टाधादि पांच प्रकार कहा है तथा सवाया-डेढा भी कहा है ऐसे अन्य ग्रंथोमें उनका अंदरका चार और वाह्य चार स्वरूप भी कहा है = अंदरका १ चौरस २ भद्रयुक्त ३ सुभद्र घ प्रतिभद्रयुक्त-ऐसा चार प्रकार-बाह्य अंश निर्गमका चार प्रकार कहा है १ आर्चा २ हस्तांथलं ३ भागधा घ समदल उसका विवरण दीपार्णवग्रंथका प्रष्ट ५५-५६ पर दिया गया है। मगृह १ सयुस) ? RE Turnea समल, 30 गर्भगृह (भि यु)
SR No.008421
Book TitleKshirarnava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherBalwantrai Sompura
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Art, & Culture
File Size13 MB
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