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________________ अथ महामेरु मंडोवराधिकार कही हुश्री भरणीके उपर माची का थर दस भागका करना । उसके उपर अंधा को चालील भागकी करना । उस जंघामें नीचे कुंभीका नौ भामकी उपर पल्लव पाल छः भागमें उसके नीचे डमरू पाँच भागमें, उसमें बीच में तीन कणियाँ और बंधन पट्टीका घाट करना । जंघाकी चालीस भागकी ऊँचाईके अर्ष भाममें अर्थात बीस भाग में कणी बंधको और पट्टी आदि बंधोंको फिरते करना । जंपामें फिरते दिग्पाल आदि देव रूपांको स्थापित करना । बाकीके उत्तम देवोंकी मूर्तियाँ अनाना । पानीतारमें मुने तापसकी खड़ी मूर्ति करना । १-१-३-४. तस्योपरि संस्थाप्यं च पंचदशोद्भमोभवेत् । दशांशा भरणी शेष पूर्ववत् कलायेत्सुधी ॥ ५॥ Ans Pun 0SAE T मान्य दीग्पालं-- पूर्व इंद्र दक्षिणे यम-धर्मराज उत्तरे कुबेर-सोम જંઘા ઉપર દેઢીયે પંદર ભાગને, તે પર દશ ભાગની ભરણુ કરવી. બાઇના ભાગે આગળ ( અધ્યાય ૧૦૭માં) કહ્યા તે પ્રમાણ એટલ ૧૪ ૬ શિરાવટી મહાકેવાળ બાર ભાગ, અંધારી ચાર ભાગ અને હજુ સોળ ભાગનું કરવું તે પ્રમાણે થરવાળા કરવા. ૫, जंघाके उपर दोढिया पन्द्रह भागका, उसके पर दस भागकी भरणी करना । बाकीके भाग आगे (अध्याय १०७ में ) कहा है इस तरह अर्थात् चौदह भाग शिरावटी, महाकेवाल, बारह भाग, अंधारी चार भाग और छज्जा सोलह भागका करना । उसके अनुसार थरवाले करना । ५. १२
SR No.008421
Book TitleKshirarnava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherBalwantrai Sompura
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Art, & Culture
File Size13 MB
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