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________________ -- अथ मंडोवर थर विभाग ઉપરને નાને) એ રીતે બાર ભાગના માચીના થરના ઘાટના વિભાગ જાણવા. १५-१६-१७. बारह भागकी माचीके थर में ऊपर कीसे साढे चार भाग प्रवेश (घाट की गहराई से) निक ला रखना । कणी दो भाग को, घसीका कंदपट्टी एक भागकी, उतना प्रतिकंद उपर का एक भागका, कर्णपट्टी-मुखपट्टी दो भागी करना । मुखपट्टी को बाजुमें कंद आधे आधे भागके करना । नीचेका कंद एक भाग का, बाकी साढे पाँच भागमें दो स्कंध (गलते) नीचे ऊपरके करना । (नीचेका मोटा, ऊपरका छोटा) इस तरह बारह भागके माचीके थरके घाट के विभाग जानना । १५-१३-१७. पदषष्टि भवेत्जंघा लोकपालस्य निर्गतः । दिग्पाल भ्रमंतस्य ततः __ त्रिपुरान्तक शिव जंघा रूप स्थाप्या प्रदक्षणे ॥१८॥ માંચના ઉપર સાઠ ભાગની જંઘા કપાલાદિ રૂપથી નીકળતી કરવી. તેમાં ફરતા પ્રદક્ષિણએ દિપાલનાં સ્વરૂપે કરવાં. ૧૮. माचीके ऊपर साठ भागकी जंघा लोकपालादि रूपसे निकलती हुई करना । उसमें फिरते प्रदक्षिण में दिग्पाल देव स्वरूप करना । १८. स्थउपरथश्चैव देवाङ्गना मुने! । वारिमार्गे मुनींद्रश्च जटाधारी शिवालये ॥१९॥ सप्त भागयता कुमि अष्टमध्येच पल्लव: । डमरकं नव भागं पत्रिशे चतुकर्णिकाः ॥२०॥ AM 11
SR No.008421
Book TitleKshirarnava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherBalwantrai Sompura
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Art, & Culture
File Size13 MB
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