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________________ - - अथ भिमान भिट्टकी नीचेकी वर्णशिलाका प्रमाण और उसकी सुहता कहते हैं। पहले भिट्टसे डेढ गुना वर्णशिलाका मोटापन रखना। उस वर्णशिलाके मोटेपन के. अर्ध भागका खरशिलाका मोटापन रखना। हे महामुनि, विशेषकर प्रत्येक स्तरों को मुद्गरके प्रहारसे दृढ करना। संपूर्ण खडीवाले पानीसे रसबस कर मुद्गरसे पीट कर उन शिलाओं को दृढ करना। हे महामुनि ! उसके ऊपर प्रासाद की रचना करना । . . . . . . इति श्री विश्वकर्मा कृते क्षीराणवे नारद पृच्छायां मिट्ट मानाधिकारे नाम .शताने द्वितियोऽध्याय ॥१०२॥ (क्रमांक अ.. ४) ઈતિ શ્રી વિશ્વકર્મા વિરચિત ક્ષીરાવ નારદમુનિએ પૂછેલ ભિટ્ટ મનને શિલ્પ વિશારદ સ્થપતિ શ્રી પ્રભાશંકર ઓઘડભાઈ સોમપુરાએ રચેલી સુપ્રભા નામની ભા ટીકા નામને એકસો એ મો અધ્યાય, इति श्री विश्वकर्मा विरचित क्षीरार्णव नारदमुनिके संवादरुप भिट्ट मानका शिल्प विशारद स्थपति श्री प्रभाशंकर. ओघडभाई सोमपुरा के हिन्दी भाषानुवादकी सुप्रभा नामकी. भाषा टीका नामका एकसौ दूसरा अध्याय ॥१०३॥ (क्रमांक अ. ४) .. द य UNMMAR KANTV JAN CCC पानीका-प्रनालका मकरमुख
SR No.008421
Book TitleKshirarnava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherBalwantrai Sompura
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Art, & Culture
File Size13 MB
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