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________________ અનેકાંત અમૃત १०७ પ્રવચનસાર જયસેનાચાર્યની ટીકા ગાથા ૪૯-૫૦ | अथैकमजानन् सर्वं न जानातीति निश्चिनोति दव्वं अणंतपज्जयमेगमणताणि दव्वजादीणि । (४९) ण विजाणादि जदि जुगर्व किध सो सव्वाणि जाणादि।। ५०।। दव्वं द्रव्यं अणंतपज्जयं अनन्तपर्यायं एग एक अणंताणि दव्वजादीणि अनन्तानि द्रव्यजानित जोण विजाणादि योन विजानाति अनन्तद्रव्यसमूहान् किध सो सव्वाणि जाणादि कथं स सर्वान जानाति जुगवं युगपदेकसमये, न कथमपीति। तथा हि-आत्मलक्षणं तावज्ज्ञानं तच्चाखण्डप्रतिभासमयं सर्वजीवसाधाराणं महासामान्यम् । तच्च महासामान्य ज्ञानमयानन्तविशेषव्यापि । ते च ज्ञानविशेषा अनन्तद्रव्यपर्यायाणां विषयभूतानां ज्ञेयभूतानां परिच्छेदका ग्राहका: । अखण्डैकप्रतिभासमयं यन्महासामान्यं तत्स्वभावमात्मानं यौऽसौ प्रत्यक्षं न जानाति स पुरुष: प्रतिभासमयेन महासामान्येन ये व्याप्ता अनन्तज्ञानविशेषास्तेषां विषयभूता: येऽनन्तद्रव्यपर्यायास्तान् कथं जानाति ? न कथमपि। अब, एक को नहीं जानता हुआ सबको नहीं जानता है, ऐसा निश्चित करते हैं जो एक द्रव्य अनंत पर्यय नन्तद्रव्य समूह को। नहिं जानता युगपत् यदि वह कैसे जाने सर्व को ॥५०।। गाथार्थ :- यदि वह आत्मा अनन्त पर्यायों वाले एक द्रव्य (आत्मद्रव्य) को तथा अनन्त द्रव्य समूह को एक साथ नहीं जानता है तो वह सभी को कैसे जान सकेगा? नहीं जान सकेगा। प्रकारान्तर से गाथार्थ - यदि यह आत्मा अनन्त पर्याय युक्त एक दव्य को नहीं जानता है तो वह सर्व अनन्त द्रव्य समूह को एक साथ कैसे जान सकेगा? नहीं जान सकेगा। टीकार्थ-द्रव्य-द्रव्य अणंतपञ्जय-अनन्त पर्याय एग-एक अणंताणि दव्वजादीणि-अनन्त द्रव्य समूह को जो ण विजाणदि-जो नहीं जानता है, किध सो सव्वाणिजाणादि-वह सबको कैसे जान सकता है? जुग-युगपत्-एक समय में, किसी
SR No.008403
Book TitleAnekanta Amrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year2008
Total Pages137
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Philosophy, & Discourse
File Size863 KB
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