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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates समयसार-कलश [भगवान् श्री कुन्द-कुन्द [अनुष्टुप] अज्ञानं ज्ञानमप्येवं कुर्वन्नात्मानमञ्जसा। स्यात्कर्तात्मात्मभावस्य परभावस्य न क्वचित्।।१६-६१।। [सोरठा] करे निजातम भाव, ज्ञान और अज्ञान मय । करे न पर के भाव, ज्ञानस्वभावी आतमा।।६१।। खंडान्वय सहित अर्थ:- "एवं आत्मा आत्मभावस्य कर्ता स्यात्'' [एवं] सर्वथा प्रकार [आत्मा] आत्मा अर्थात् जीवद्रव्य [आत्मभावस्य कर्ता स्यात् ] अपने परिणामका कर्ता होता है, "परभावस्य कर्ता न क्वचित् स्यात्'' [ परभावस्य] कर्मरूप अचेतन पुद्गलद्रव्यका [कर्ता क्वचित् न स्यात् ] कभी तीनों कालमें कर्ता नहीं होता। कैसा है आत्मा ? "ज्ञानम् अपि आत्मानम् कुर्वन्' [ ज्ञानम् ] शुद्ध चेतनमात्र प्रगटरूप सिद्ध-अवस्था [अपि] उसरूप भी [ आत्मानम् कुर्वन् ] आप तद्रूप परिणमता है। और कैसा है ? "अज्ञानम् अपि आत्मानम् कुर्वन् ''[अज्ञानम्] अशुद्ध चेतनारूप विभाव परिणाम [ अपि] उसरूप भी [आत्मानम् कुर्वन् ] आप तद्रूप परिणमता है। भावार्थ इस प्रकार है - जीवद्रव्य अशुद्ध चेतनारूप परिणमता है, शुद्ध चेतनारूप परिणमता है, इसलिए जिस कालमें जिस चेतनारूप परिणमता है उसकालमें उसी चेतनाके साथ व्याप्यव्यापकरूप है, इसलिए उस कालमें उसी चेतनाका कर्ता है। तो भी पुद्गलपिंडरूप जो ज्ञानावरणादि कर्म है उसके साथ तो व्याप्य-व्यापकरूप नहीं है, इसलिए उसका कर्ता नहीं है। "अञ्जसा'' समस्तरूपसे ऐसा अर्थ है।। १६-६१।। [अनुष्टुप] आत्मा ज्ञानं स्वयं ज्ञानं ज्ञानादन्यत्करोति किम्। परभावस्य कर्तात्मा मोहोऽयं व्यवहारिणाम्।।१७-६२।। [सोरठा] ज्ञानस्वभावी जीव, करे ज्ञान से भिन्न क्या ? कर्ता पर का जीव, जगतजनों का मोह यह।।६२।। खंडान्वय सहित अर्थ:- "आत्मा ज्ञानं करोति'' [ आत्मा] आत्मा अर्थात् चेतनद्रव्य [ ज्ञानं] चेतनामात्र परिणाम को[ करोति] करता है। कैसा होता हुआ ? "स्वयं ज्ञानं'' जिस कारण से आत्मा स्वयं चेतना परिणाममात्र स्वरूप है। "ज्ञानात् अन्यत् करोति किम्'' [ ज्ञानात् अन्यत्] चेतन परिणामसे भिन्न जो अचेतन पुद्गल परिणामरूप कर्म उसका[ किम् करोति] करता है क्या ? अपितु न करोति-- सर्वथा नहीं करता है। ''आत्मा परभावस्य कर्ता अयं व्यवहारिणां मोह:" [ आत्मा] चेतनद्रव्य [ परभावस्य कर्ता] ज्ञानावरणादि कर्मको करता है [ अयं] ऐसा जानपना, ऐसा कहना [ व्यवहारिणां मोह: ] मिथ्यादृष्टि जीवोंका अज्ञान है। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008397
Book TitleSamaysara Kalash
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size3 MB
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