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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates कहान जैन शास्त्रमाला] अजीव-अधिकार [उपजाति] वर्णादिसामग्यमिदं विदन्तु निर्माणमेकस्य हि पुद्गलस्य। ततोऽस्त्विदं पुद्गल एव नात्मा यतः स विज्ञानघनस्ततोऽन्यः।। ७-३९ ।। [दोहा] वर्णादिक जो भाव हैं, वे सब पुद्गल जन्य। एक शुद्ध विज्ञानघन आतम इनसे भिन्न।।३९ ।। खंडान्वय सहित अर्थ:- “हि इदं वर्णादिसामग्यम् एकस्य पुद्गलस्य निर्माणम् विदन्तु' [हि] निश्चयसे [ इदं] विद्यमान [वर्णादिसामग्यम् ] गुणस्थान, मार्गणास्थान, द्रव्यकर्म, भावकर्म, नोकर्म इत्यादि जितनी अशुद्ध पर्यायें हैं वे समस्त ही [ एकस्य पुद्गलस्य ] अकेले पुद्गल द्रव्यका [निर्माणम्] कार्य है अर्थात् पुद्गल द्रव्यका चित्राम जैसा है ऐसा [विदन्तु] भो जीव ! निःसंदेहरूपसे जानो। “ततः इदं पुद्गलः एव अस्तु, न आत्मा'' [ततः] उस कारणसे [इदं] शरीरादि सामग्री [पुद्गलः ] जिस पुद्गल द्रव्यसे हुई वही पुद्गल द्रव्य है । [ एव] निश्चयसे [ अस्तु] वही है। [न आत्मा ] आत्मा अजीव द्रव्यरूप नहीं हुआ। “यतः सः विज्ञानघनः'' [ यतः] जिस कारणसे [ स:] जीवद्रव्य [विज्ञानघनः ] ज्ञानगुणका समूह है। , "ततः अन्यः'' [ततः] उस कारणसे [ अन्यः] जीवद्रव्य भिन्न है, शरीरादि परद्रव्य भिन्न हैं। भावार्थ इस प्रकार है कि लक्षणभेदसे वस्तुका भेद होता है, इसलिये चैतन्यलक्षणसे जीववस्तु भिन्न है, अचेतनलक्षणसे शरीरादि भिन्न है। यहाँ पर कोई आशंका करता है कि 'कहने में तो ऐसा ही कहा जाता है कि 'एकेन्द्रिय जीव, बे-इन्द्रिय जीव' इत्यादि। ‘देव जीव, मनुष्य जीव' इत्यादि। ‘रागी जीव, द्वेषी जीव' इत्यादि। उत्तर इस प्रकार है कि कहने में तो व्यवहारसे ऐसा ही कहा जाता है, निश्चयसे ऐसा कहना झूठा है। सो कहते हैं।। ७-३९ ।। १ भावार्थ इसौ जो रूपाका म्यान माहै खांडो रहे छे, इसी कहावत है, तिहितै रूपाको खांडो कहतां इसौ कहिजै छे।।मूलपाठ।। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008397
Book TitleSamaysara Kalash
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size3 MB
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