SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates समयसार-कलश [भगवान् श्री कुन्द-कुन्द और कैसे हैं तीर्थंकर ? ' 'ये रूपेण जनमनो मुष्णन्ति'' [ये] तीर्थंकर [ रूपेण ] शरीरकी शोभा द्वारा [ जन] सर्व जितने देव-मनुष्य-तिर्यंच,उनके [ मनः] अंतरंगको [ मुष्णन्ति] चुरा लेते हैं। भावार्थ इस प्रकार है कि जीव तीर्थंकरके शरीरकी शोभा देखकर जैसा सुख मानते हैं वैसा सुख त्रैलोक्यमें अन्य वस्तुको देखनेसे नहीं मानते हैं। ऐसे वे तीर्थंकर हैं। यहाँ भी शरीरकी बड़ाई की है। और कैसे हैं तीर्थंकर ? ''ये दिव्येन ध्वनिना श्रवणयोः साक्षात् सुखं अमृतं क्षरन्तः'' [ये] तीर्थंकरदेव [ दिव्येन] समस्त त्रैलोक्यमें उत्कृष्ट ऐसी [ध्वनिना] निरक्षरी वाणी के द्वारा [ श्रवणयोः] सर्व जीवकी जो कर्णेन्द्रिय, उनमें [ साक्षात्] उसीकाल [ सुखं अमृतं] सुखमयी शान्तरसको [क्षरन्तः] बरसाते हैं। भावार्थ इस प्रकार है कि तीर्थंकरकी वाणी सुननेपर सब जीवोंको वाणी रुचती है, जीव बहुत सुखी होते हैं। तीर्थंकर ऐसे हैं। यहाँ भी शरीरकी बड़ाई की है। और कैसे हैं तीर्थंकर ? "अष्टसहस्रलक्षणधराः'' [अष्टसहस्र ] आठ अधिक एक हजार [ लक्षणधराः] शरीरके चिह्नोंको सहज ही धारण करते हैं ऐसे तीर्थंकर हैं। भावार्थ इस प्रकार है कि तीर्थंकरके शरीरमें शंख, चक्र, गदा, पद्म, कमल, मगर, मच्छ, ध्वजा आदिरूप आकारको लिये हुए रेखायें होती हैं जिन सबकी गिनती करनेपर वे सब एक हजार आठ होते हैं। यहाँ भी शरीरकी बड़ाई है। और कैसे हैं तीर्थंकर ? ' 'सूरयः'' मोक्षमार्गके उपदेष्टा हैं। यहाँ भी शरीरकी बड़ाई है। इससे जीव-शरीर एक ही है ऐसी मेरी प्रतीति है ऐसा कोई मिथ्यामतवादी मानता है सो उसके प्रति उत्तर इस प्रकार आगे कहेंगे। ग्रंथकर्ता कहते है कि वचनव्यवहारमात्रसे जीव-शरीरका एकपना कहनेमें आता है। इसी से ऐसा कहा है कि जो शरीरका स्तोत्र है सो वह तो व्यवहारमात्रसे जीवका स्तोत्र है। द्रव्यदृष्टिसे देखनेपर जीव शरीर भिन्न भिन्न है। इसलिये जैसा स्तोत्र कहा है वह निज नामसे झूठा है [अर्थात् उसका नाम स्तोत्र घटित नहीं होता], क्योंकि शरीरके गुण कहनेपर जीवकी स्तुति नहीं होती है। जीवके ज्ञानगुणकी स्तुति करनेपर [ जीवकी ] स्तुति होती है। कोई प्रश्न करता है कि जिस प्रकार नगरका स्वामी राजा है, इसलिये नगरकी स्तुति करनेपर राजाकी स्तुति होती है, उसी प्रकार शरीरका स्वामी जीव है, इसलिये शरीरकी स्तुति करनेपर जीवकी स्तुति होती है, उत्तर ऐसा है कि इस प्रकार स्तुति नहीं होती है। राजाके निज गुणकी स्तुति करनेपर राजाकी स्तुति होती है उसी प्रकार जीवके निज चैतन्यगुणकी स्तुति करनेपर जीवकी स्तुति होती है। इसी को कहते हैं।।२४।। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008397
Book TitleSamaysara Kalash
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy