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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates समयसार-कलश [भगवान् श्री कुन्द-कुन्द [अनुष्टुप] परमार्थेन तु व्यक्तज्ञातृत्वज्योतिषैककः। सर्वभावान्तरध्वंसिस्वभावत्वादमेचकः।। १८ ।। [हरिगीत] आतमा मेचक कहा है यद्यपि व्यवहार से। किन्तु वह मेचक नहीं है अमेचक परमार्थ से।। है प्रगट ज्ञायक ज्योतिमय वह एक है भूतार्थ से। है शुद्ध ऐकाकार पर से भिन्न है परमार्थ से।।१८।। खंडान्वय सहित अर्थ:- "तु परमार्थेन एकक: अमेचक:'' [तु] 'तु' पद द्वारा दूसरा पक्ष क्या है यह व्यक्त किया है। [ परमार्थेन] शुद्ध द्रव्यदृष्टिसे [ एकक:] शुद्ध जीववस्तु [अमेचक:] निर्मल है-निर्विकल्प है। कैसा है परमार्थ ? '' व्यक्तज्ञातृत्वज्योतिषा'' [व्यक्त ] प्रगट है [ ज्ञातृत्व] ज्ञानमात्र [ ज्योतिषा] प्रकाश-स्वरूप जिसमें ऐसा है। भावार्थ इस प्रकार है कि शुद्ध-निर्भेद वस्तुमात्रग्राहक ज्ञान निश्चयनय कहा जाता है। उस निश्चयनयसे जीवपदार्थ सर्वभेद रहित शुद्ध है। और कैसा होनेसे शुद्ध है ? "सर्वभावान्तरध्वंसिस्वभावत्वात्'' [ सर्व] समस्त द्रव्यकर्म-भावकर्मनोकर्म अथवा ज्ञेयरूप परद्रव्य ऐसे जो [भावान्तर] उपाधिरूप विभावभाव उनका [ध्वंसि] मेटनशील है [ स्वभावत्वात् ] निजस्वरूप जिसका, ऐसा स्वभाव होनेसे शुद्ध है।। १८ ।। [अनुष्टुप] आत्मनश्चिन्तयैवालं मेचकामेचकत्वयोः। दर्शन-ज्ञान-चारित्रैः साध्यसिद्धिर्न चान्यथा।। १९ ।। [हरिगीत] मेचक अमेचक आत्मा के चिन्तवन से लाभ क्या । बस करो अब तो इन विकल्पों से तुम्हें है साध्य क्या।। हो साध्य सिद्धि एक बस सद्ज्ञान दर्शनचरणसे । पथ अन्य कोई है नहीं जिससे बचे संसरण से ।।१९।। खंडान्वय सहित अर्थ:- "मेचकामेचकत्वयोः आत्मनः चिन्तया एव अलं'' आत्मा [ मेचक] मलिन है और [अमेचक] निर्मल है, इस प्रकार ये दोनो नय पक्षपातरूप हैं। [आत्मनः] चेतनद्रव्यके ऐसे [ चिन्तया] विचारसे [ अलं] बस हो। ऐसा विचार करनेसे तो साध्यकी सिद्धि नहीं होती [ एव] ऐसा निश्चय जानना। भावार्थ इस प्रकार है कि श्रुतज्ञानसे आत्मस्वरूप विचारनेपर बहुत विकल्प उत्पन्न होते हैं। एक पक्षसे विचारनेपर आत्मा अनेकरूप है, दूसरे पक्षसे विचारनेपर आत्मा अभेदरूप है। ऐसे विचारते हुए तो स्वरूप अनुभव नहीं। यहाँ पर कोई प्रश्न करता है कि विचारते हुए तो अनुभव नहीं, तो अनुभव कहाँ है ? उत्तर इस प्रकार है कि प्रत्यक्षरूपसे वस्तुको आस्वादते हुए अनुभव है। वही कहते है-'दर्शन-ज्ञान-चारित्रैः साध्यसिद्धिः' [दर्शन] शुद्धस्वरूपका अवलोकन, Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008397
Book TitleSamaysara Kalash
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size3 MB
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