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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates २३२ समयसार-कलश [ भगवान् श्री कुन्द-कुन्द ज्ञानकी पर्याय, उनसे ज्ञानवस्तुकी सत्ताको मानता है। उनसे भिन्न है अपनी शक्तिकी सत्तामात्र उसे नहीं मानता है। ऐसा है एकान्तवादी। उसके प्रति स्याद्वादी समाधान करता है कि ज्ञानमात्र जीववस्तु समस्त ज्ञेयशक्तिको जानती है ऐसा सहज है। परन्तु अपनी ज्ञानशक्तिसे अस्तिरूप है ऐसा कहते हैं"पशुः नश्यति एव'' [पशुः] एकान्तवादी [ नश्यति] वस्तुकी सत्ताको साधनेसे भ्रष्ट है। [ एव] निश्चयसे। कैसा है एकान्तवादी ? ""बहिः वस्तुषु नित्यं विश्रान्तः'' [ बहिः वस्तुषु] समस्त ज्ञेयवस्तुकी अनेक शक्तिकी आकृतिरूप परिणमी है ज्ञानकी पर्याय, उसमें [ नित्यं विश्रान्तः] सदा विश्रान्त है अर्थात् पर्यायमात्रको जानता है ज्ञानवस्तु, ऐसा है निश्चय जिसका ऐसा है। किस कारणसे ऐसा है ? "परभावभावकलनात्'' [परभाव] ज्ञेयकी शक्तिकी आकृतिरूप है ज्ञानकी पर्याय उसमें [भावकलनात् ] अवधार किया है ज्ञानवस्तुका अस्तिपना ऐसे झूठे अभिप्रायके कारण। और कैसा है एकान्तवादी ? "स्वभावमहिमनि एकान्तनिश्चेतनः" [स्वभाव] जीवकी ज्ञानमात्र निज शक्तिके [ महिमनि] अनादिनिधन शाश्वत प्रतापमें [ एकान्तनिश्चेतन:] एकान्त निश्चेतन है अर्थात् उससे सर्वथा शून्य है। भावार्थ इस प्रकार है कि स्वरूपसत्ताको नहीं मानता है ऐसा है एकान्तवादी, उसके प्रति स्याद्वादी समाधान करता है-'"तु स्वाद्वादी नाशम् न एति'' [तु] एकान्तवादी मानता है उस प्रकार नहीं है, स्याद्वादी मानता है उस प्रकार है। [स्याद्वादी] अनेकान्तवादी [नाशम्] विनाशको [ न एति] नहीं प्राप्त होता है। भावार्थ इस प्रकार है कि ज्ञानमात्र वस्तुकी सत्ताको साध सकता है। कैसा है अनेकान्तवादी जीव ? ''सहजस्पष्टीकृतप्रत्ययः" [ सहज ] स्वभावशक्तिमात्र ऐसा जो अस्तित्व उस सम्बन्धी [ स्पष्टीकृत] दृढ़ किया है [प्रत्ययः] अनुभव जिसने ऐसा है। और कैसा है ? ''सर्वस्मात् नियतस्वभावभवनज्ञानात् विभक्तः भवन्' [ सर्वस्मात् ] जितने हैं [नियतस्वभाव] अपनी अपनी शक्ति विराजमान ऐसे जो ज्ञेयरूप जीवादि पदार्थ उनकी [ भवन] सत्ताकी आकृतिरूप परिणमी है ऐसी [ज्ञानात्] जीवके ज्ञानगुणकी पर्याय, उनसे [ विभक्त: भवन् ] भिन्न है ज्ञानमात्र सत्ता ऐसा अनुभव करता हुआ।। १२-२५८ ।। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008397
Book TitleSamaysara Kalash
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size3 MB
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