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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates २२० समयसार-कलश [ भगवान् श्री कुन्द-कुन्द कोई अज्ञानी एकान्तवादी ऐसा मानता है, इसलिए ऐसे अज्ञानीके मतमें ज्ञान वस्तु ऐसा नहीं पाया जाता। स्याद्वादीके मतमें ज्ञान वस्तु ऐसा पाया जाता है। "पुनः स्याद्वादिनः तत् पूर्ण समुन्मजति'' [पुनः] एकान्तवादी कहता है उस प्रकार नहीं है, स्याद्वादी कहता है उस प्रकार है। [स्याद्वादिनः] एक सत्ताको द्रव्यरूप तथा पर्यायरूप मानते है ऐसे जो सम्यग्दृष्टि जीव उनके मतमें [ तत्] ज्ञानवस्तु [पूर्णं ] जैसी ज्ञेयसे होती कही, विनशती कही वैसी नहीं है, जैसी है वैसी ही है, ज्ञेयसे भिन्न स्वयंसिद्ध अपने से है [ समुन्मज्जति] एकान्तवादीके मतमें मूलसे लोप हो गया था वही ज्ञान स्याद्वादीके मतमें ज्ञानवस्तुरूप प्रगट हुआ। किस कारणसे प्रगट हुआ ? "दूरोन्मग्नघनस्वभावभरतः'' [ दूर ] अनादिसे लेकर [ उन्मग्न ] स्वयंसिद्ध वस्तुरूप प्रगट है ऐसा [घन] अमिट [अटल] [स्वभाव] ज्ञानवस्तुका सहज उसके [भरत:] न्याय करनेपर, अनुभव करनेपर ऐसा ही है ऐसे सत्त्यपने के कारण। कैसा न्याय कैसा अनुभव ये दोनों जिस प्रकार होते हैं उस प्रकार कहते हैं- "यत् तत् स्वरूपतः तत् इति'' [ यत्] जो वस्तु [ तत्] वह वस्तु [स्वरूपतः तत् ] अपने स्वभावसे वस्तु है [इति] ऐसा अनुभवकरनेपर अनुभव भी उत्पन्न होता है, युक्ति भी प्रगट होती है। अनुभव निर्विकल्प है। युक्ति ऐसी कि ज्ञानवस्तु द्रव्यरूपसे विचार करनेपर अपने स्वरूप है, पर्यायरूपसे विचार करनेपर ज्ञेयसे है। जिस प्रकार ज्ञानवस्तु द्रव्यरूपसे ज्ञानमात्र है पर्यायरूपसे घटज्ञानमात्र है, इसलिए पर्यायरूपसे देखनेपर घटज्ञान जिस प्रकार कहा है, घटके सद्भावमें है, घटके नहीं होनेपर नहीं है-वैसे ही है। द्रव्यरूपसे अनुभव करनेपर घटज्ञान ऐसा न देखा जाय, ज्ञान ऐसा देखा जाय तो घटसे भिन्न अपने स्वरूपमात्र स्वयंसिद्ध वस्तु है। इस प्रकार अनेकान्तके साधनेपर वस्तुस्वरूप सधता है। एकान्तसे जो घट घटज्ञानका कर्ता है, ज्ञानवस्तु नहीं है तो ऐसा होना चाहिए कि जिस प्रकार घटके पास बेठे पुरुषको घटज्ञान होता है उसी प्रकार जिस किसी वस्तु को घटके पास रखा जाय उसे घटज्ञान होना चाहिए। ऐसा होनेपर स्तम्भके पास घटके होनेपर स्तम्भको घटज्ञान होना चाहिए सो ऐसा तो नहीं दिखाई देता। तिस कारण ऐसा भाव प्रतीति में आता है कि जिसमे ज्ञानशक्ति विद्यमान है उसको घटके पास बैठकर घटके देखने विचारनेपर घटज्ञानरूप इस ज्ञानकी पर्याय परिणमती है। इसलिए स्याद्वाद वस्तुका साधक है, एकान्तपना वस्तुका नाशकर्ता है।। २-२४८ ।। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008397
Book TitleSamaysara Kalash
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size3 MB
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