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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates २१८ समयसार-कलश [ भगवान् श्री कुन्द-कुन्द [शार्दूलविक्रीडित] बाह्याथैः परिपीतमुज्झितनिजप्रव्यक्तिरिक्तीभवद् विश्रान्तं पररूप एव परितो ज्ञानं पशो: सीदति। यत्तत्तत्तदिह स्वरूपत इति स्याद्वादिनस्तत्पुनर्दूरोन्मग्नघनस्वभावभरतः पूर्णं समुन्मज्जति।।२-२४८ ।। [हरिगीत] बाह्यार्थ ने ही पी लिया निज व्यक्तता से रिक्त जो। वह ज्ञान तो सम्पूर्णत: पररूप में विश्रान्त है। परसे विमुख हो स्वोन्मुख सद्ज्ञानियों का ज्ञानतो। ‘स्वरूपसे ही ज्ञान है ' - इस मान्यता से पुष्ट ।।२४८ ।। खंडान्वय सहित अर्थ:- भावार्थ इस प्रकार है कि जो ज्ञानमात्र जीवका स्वरूप है उसमें भी चार प्रश्न विचारणीय है। वे प्रश्न कौन ? एक तो प्रश्न ऐसा कि ज्ञान ज्ञेयके सहारेका है कि अपने सहारेका है ? दूसरा प्रश्न ऐसा कि ज्ञान एक है कि अनेक है ? तीसरा प्रश्न ऐसा कि ज्ञान अस्तिरूप है कि नास्तिरूप है ? चौथा प्रश्न ऐसा कि ज्ञान नित्य है कि अनित्य है ? उनका उत्तर इस प्रकार है कि जितनी वस्तु हैं वे सब द्रव्यरूप हैं, पर्यायरूप हैं। इसलिए ज्ञान भी द्रव्यरूप है, पर्यायरूप है। उसका विवरण-द्रव्यरूप कहनेपर निर्विकल्प ज्ञानमात्र वस्तु, पर्यायरूप कहनेपर स्वज्ञेय अथवा परज्ञेयको जानता हुआ ज्ञेयकी आकृति-प्रतिबिम्बरूप परिणमता है जो ज्ञान। भावार्थ इस प्रकार है कि ज्ञेयको जाननेरूप परिणति ज्ञानकी पर्याय, इसलिए ज्ञानको पर्यायरूपसे कहनेपर ज्ञान ज्ञेयके सहारेका है। [ ज्ञानको] वस्तुमात्रसे कहनेपर अपने सहारेका है। एक प्रश्नका समाधान तो इस प्रकार है। दूसरे प्रश्नका समाधान इस प्रकार है कि ज्ञानको पर्यायमात्रसे कहनेपर ज्ञान अनेक है, वस्तुमात्रसे कहनेपर एक है। तीसरे प्रश्नका उत्तर इस प्रकार है कि ज्ञानको पर्यायरूपसे कहनेपर ज्ञान नास्तिरूप है, ज्ञानको वस्तुरूपसे विचारनेपर ज्ञान अस्तिरूप है। चौथे प्रश्नका उत्तर इस प्रकार है कि ज्ञानको पर्यायमात्रसे कहनेपर ज्ञान अनित्य है, वस्तुमात्रसे कहनेपर ज्ञान नित्य है। ऐसा प्रश्न करनेपर ऐसा समाधान करना, स्याद्वाद इसका नाम है। वस्तुका स्वरूप ऐसा ही है तथा इस प्रकार साधनेपर वस्तुमात्र सधती है। जो कोई मिथ्यादृष्टि जीव वस्तुको वस्तुरूप है तथा वही वस्तु पर्यायरूप है ऐसा नहीं मानते हैं, सर्वथा वस्तुरूप मानते हैं अथवा सर्वथा पर्यायमात्र मानते हैं, वे जीव एकान्तवादी मिथ्यादृष्टि कहे जाते हैं। कारण कि वस्तुमात्रको माने बिना पर्यायमात्रके माननेपर पर्यायमात्र भी नहीं सधती है; वहाँ अनेक प्रकार साधन-बाधन है, Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008397
Book TitleSamaysara Kalash
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size3 MB
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