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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates कहान जैन शास्त्रमाला] सर्वविशुद्धज्ञान-अधिकार २१३ [स्थितिम् एति] स्थिरता करता है, ''च तं अनिशं ध्यायेत्'' [ च] तथा [तं] शुद्ध चिद्रूपको [ अनिशं ध्यायेत् ] निरन्तर अनुभवता है, “च तं चेतति'' [तं चेतति] बार बार उस शुद्धस्वरूपका स्मरण करता है [च] और 'तस्मिन् एव निरन्तरं विहरति'' [तस्मिन् ] शुद्ध चिद्रूपमें [ एव] एकाग्र होकर [निरन्तरं विहरति] अखण्ड धाराप्रवाहरूप प्रवर्तता है। कैसा होता हुआ ? "द्रव्यान्तराणि अस्पृशन्'' जितनी कर्मके उदयसे नाना प्रकारकी अशुद्ध परिणति उसको सर्वथा छोड़ता हुआ। वह चिद्रूप कौन है ? "यः एषः दृग्ज्ञप्तिवृत्तात्मक:'' [यः एषः ] जो यह ज्ञानके प्रत्यक्ष है [ग] दर्शन [ज्ञप्ति ] ज्ञान [ वृत्त] चारित्र, वही है [आत्मक:] सर्वस्व जिसका, ऐसा है। और कैसा है ? " मोक्षपथः'' जिसके शुद्धस्वरूप परिणमनेपर सकल कर्मोका क्षय होता है। और कैसा है ? "एक:'' समस्त विकल्पसे रहित है। और कैसा है ? ''नियतः'' द्रव्यार्थिकदृष्टिसे देखनेपर जैसा है वैसा ही है, उससे हीनरूप नहीं है, अधिक नहीं है।। ४८-२४०।। [शार्दूलविक्रीडित] ये त्वेनं परिहृत्य संवृतिपथप्रस्थापितेनात्मना लिङ्गे द्रव्यमये वहन्ति ममतां तत्त्वावबोधच्युताः। नित्योद्योतमखण्डमेकमतुलालोकं स्वभावप्रभाप्राग्भारं समयस्य सारममलं नाद्यापि पश्यन्ति ते।। ४९-२४१।। [हरिगीत] जो पुरुषतज पूर्वोक्त पथ व्यवहार में वर्तन करें। तर जायेंगे यह मानकर द्रव्यलिङ्गमें ममता धरें।। वे नहीं देखें आतमा निज अमल एक उद्योतमय। अर अखण्ड अभेद चिन्मय अज अतुल आलोकमय।।२४१ ।। खंडान्वय सहित अर्थ:- "ते समयस्य सारम् अद्यापि न पश्यन्ति'' [ते] ऐसी है मिथ्यादृष्टि जीवराशि वह [ समयस्य सारम्] सकल कर्मसे विमुक्त है जो परमात्मा उसे [अद्यापि] द्रव्यव्रत धारण किया है, बहुतसे शास्त्र पढ़े हैं तो भी [ न पश्यन्ति] नहीं प्राप्त होती है। भावार्थ इस प्रकार है कि निर्वाण पदको नहीं प्राप्त होती है। कैसा है समयसार ? " नित्योद्योतम्'' सर्व काल प्रकाशमान है। और कैसा है ? "अखण्डम्'' जैसा था वैसा है। और कैसा है ? "एकम्" निर्विकल्प सत्तारूप है। और कैसा है ? ''अतुलालोकं'' जिसकी उपमाका दृष्टान्त तीन लोकमें कोई नहीं है। और कैसा है ? "स्वभावप्रभाप्राग्भारं'' [ स्वभाव ] चेतनास्वरूप उसका [प्रभा] प्रकाश उसका [प्राग्भारं] एक पुंज है। और कैसा है ? ''अमलं'' कर्ममलसे रहित है। कैसी है वह मिथ्यादृष्टि जीवराशि ? "ये लिङ्गे ममतां वहन्ति'' [ये] जो कोई मिथ्यादृष्टि जीवराशि [लिङ्गे] द्रव्यक्रियामात्र है जो यतिपना उसमें [ ममतां वहन्ति] 'मैं यति हूँ, हमारी क्रिया मोक्षमार्ग है' ऐसी प्रतीति करती है। कैसा है लिंग ? "द्रव्यमये'' शरीरसम्बन्धी है-बाह्य क्रियामात्रका अवलंबन करता है। कैसे हैं वे जीव ? ' तत्त्वावबोधच्युताः'' Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008397
Book TitleSamaysara Kalash
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size3 MB
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