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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates २०० समयसार-कलश [ भगवान् श्री कुन्द-कुन्द [शार्दूलविक्रीडित] पूर्णेकाच्युतशुद्धबोधमहिमा बोधा न बोध्यादयं यायात्कामपि विक्रियां तत इतो दीपः प्रकाश्यादिव। तद्वस्तुस्थितिबोधवन्ध्यधिषणा एते किमज्ञानिनो रागद्वेषमयीभवन्ति सहजां मुञ्चन्त्युिदासीनताम्।।३०-२२२।। [रोला] जैसे दीपक दीप्य वस्तुओं से अप्रभावित, वैसे ही ज्ञायक ज्ञेयों से विकृत न हो। फिर भी अज्ञानी जन क्यों असहज होते हैं, न जाने क्यों व्याकुल हो विचलित होते हैं।।२२२ । खंडान्वय सहित अर्थ:- भावार्थ इस प्रकार है कि कोई मिथ्यादृष्टि जीव ऐसी आशंका करेगा कि जीवद्रव्य ज्ञायक है, समस्त ज्ञेयको जानता है, इसलिए परद्रव्यको जानते हुए कुछ थोड़ा-बहुत रागादि अशुद्ध परिणतिका विकार होता होगा? उत्तर इस प्रकार है कि परद्रव्यको जानते हुए तो एक निरंशमात्र भी नहीं है, अपनी विभावपरिणति करनेसे विकार है। अपनी शुद्ध परिणति होनेपर निर्विकार है। ऐसा कहते हैं- "एते अज्ञानिन: किं रागद्वेषमयीभवन्ति, सहजां उदासीनतां किं मुञ्चति'' [ एते अज्ञानिनः] विद्यमान है जो मिथ्यादृष्टि जीव वे [ किं रागद्वेषमयीभवन्ति] रागद्वेष-मोहरूप अशुद्ध परिणतिमें मग्न ऐसे क्यों होते हैं ? तथा [ सहज उदासीनतां किं मुञ्चति] सहज ही है सकल परद्रव्यसे भिन्नपना ऐसी प्रतीति को क्यों छोड़ते हैं ? भावार्थ इस प्रकार है कि वस्तुका स्वरूप तो प्रगट है, विचलित होते हैं सो पूरा अचम्भा है। कैसे हैं अज्ञानी जीव ? "तद्वस्तुस्थितिबोधवन्ध्यधिषणाः'' [तद्वस्तु] शुद्ध जीवद्रव्यकी [ स्थिति] स्वभावकी मर्यादाके [ बोध ] अनुभवसे [वन्ध्य ] शून्य है [ धिषणाः] बुद्धि जिनकी, ऐसे हैं। जिस कारणसे 'अयं बोधा'' विद्यमान है जो चेतनामात्र जीव द्रव्य वह "बोध्यात्'' समस्त ज्ञेयको जानता है, इस कारण 'कामपि विक्रियां न यायात्" राग-द्वेष-मोहरूप किसी विक्रियारूप नहीं परिणमता है। कैसा है जीवद्रव्य ? ''पूर्णेकाच्युतशुद्धबोधमहिमा" [ पूर्ण] नहीं है खण्ड जिसका , [ एक] समस्त विकल्पसे रहित [अच्युत] अनन्त काल पर्यन्त स्वरूपसे नहीं चलायमान [शुद्ध ] द्रव्यकर्म भावकर्म नोकर्मसे रहित ऐसा जो [ बोध ] ज्ञानगुण वही है [ महिमा] सर्वस्व जिसका , ऐसा है। दृष्टान्त कहते हैं-"ततः इतः प्रकाश्यात् दीपः इव'' [ततः इतः] बाएँ-दाहिने, ऊपर-तले, आगे-पीछे [प्रकाश्यात् ] दीपकके प्रकाशसे देखते हैं घड़ा कपड़ा इत्यादि उस कारण [दीप: इव] जिस प्रकार दीपकमें कोई विकार नहीं उत्पन्न होता। भावार्थ इस प्रकार है कि जिस प्रकार दीपक प्रकाशस्वरूप है, घट-पटादि अनेक वस्तुओंको प्रकाशता है। प्रकाशते हुए जो अपना प्रकाशमात्र स्वरूप था वैसा ही है, विकार तो कुछदेखा नहीं जाता। उसी प्रकार जीवद्रव्य ज्ञानस्वरूप है, समस्त ज्ञेयको जानता है। जानते हुए जो अपना Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008397
Book TitleSamaysara Kalash
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size3 MB
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