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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates कहान जैन शास्त्रमाला] सर्वविशुद्धज्ञान-अधिकार १९१ [ रथोद्धता] वस्तु चैकमिह नान्यवस्तुनो येन तेन खलु वस्तु वस्तु तत्। निश्चयोऽयमपरो परस्य क: किं करोति हि बहिर्जुठन्नपि।। २१-२१३।। [रोला] एक वस्तु हो नहीं कभी भी अन्य वस्तु की। वस्तु वस्तु की ही है - ऐसा निश्चित जानो।। ऐसा है तो अन्य वस्तु यदि बाहर लोटे। तो फिर वह क्या कर सकती है अन्य वस्तु का।।२१३ ।। खंडान्वय सहित अर्थ:- अर्थ कहा था उसे गाढ़ा करते हैं – “येन इह एकम् वस्तु अन्यवस्तुनः न'' [येन] जिस कारणसे [इह ] छह द्रव्योंमें कोई [ एकम् वस्तु] जीवद्रव्य अथवा पुद्गलद्रव्य सत्तारूप विद्यमान है वह [अन्यवस्तुनः न] अन्य द्रव्यसे सर्वथा नहीं मिलता ऐसी द्रव्योंके स्वभावकी मर्यादा है। "तेन खलु वस्तु तत् वस्तु' [ तेन] तिस कारणसे [ खलु ] निश्चयसे [ वस्तु] जो कोई द्रव्य [तत् वस्तु] वह अपने स्वरूप है - जिस प्रकार है उसी प्रकार है, "अयम् निश्चयः'' ऐसा तो निश्चय है, परमेश्वरने कहा है, अनुभवगोचर भी होता है। "क: अपर: बहिः लुठन् अपि अपरस्य किं करोति'' [क: अपर:] ऐसा कौन द्रव्य है जो [बहि: लुठन् अपि] यद्यपि ज्ञेय वस्तुको जानता है तो भी [अपरस्य किं करोति] ज्ञेय वस्तुके साथ सम्बन्ध कर सके ? अर्थात् कोई द्रव्य नहीं कर सके। भावार्थ इस प्रकार है कि वस्तुस्वरूपकी मर्यादा तो ऐसी है कि कोई द्रव्य किसी द्रव्यके साथ एकरूप नहीं होता है। इसके उपरांत भी जीवका स्वभाव ज्ञेयवस्तुको जाने ऐसा है तो रहो तो भी धोखा तो कुछ नहीं है। जीव द्रव्य ज्ञेयको जानता हुआ अपने स्वरूप है।। २१-२१३।। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008397
Book TitleSamaysara Kalash
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size3 MB
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