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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates १६४ समयसार-कलश [भगवान् श्री कुन्द-कुन्द [शार्दूलविक्रीडित] अद्वैतापि हि चेतना जगति चेद् दृग्ज्ञप्तिरूपं त्यजेत् तत्सामान्यविशेषरूपविरहात्साऽस्तित्वमेव त्यजेत्। तत्त्यागे जडता चितोऽपि भवति व्याप्यो विना व्यापकादात्मा चान्तमुपैति तेन नियतं दृग्ज्ञप्तिरूपास्तु चित्।।४-१८३।। [हरिगीत] है यद्यपि अद्वैत ही यह चेतना इस जगत में । किन्तु फिर भी ज्ञानदर्शन भेद से दो रूप है।। यह चेतना दर्शन सदा सामान्य अवलोकन करे। पर ज्ञान जाने सब विशेषों को तदपि निज में रहे।। अस्तित्व ही ना रहे इनके बिना चेतन द्रव्य का। चेतन के बिना चेतन द्रव्य का अस्तित्व क्या ? चेतन नहीं बिन चेतना चेतन बिना ना चेतना। बस इसलिए हे आत्मन् ! इनमें सदा ही चेतना।।१८३।। खंडान्वय सहित अर्थ:- "तेन चित् नियतं दृग्ज्ञप्तिरूपा अस्तु'' [ तेन ] तिस कारणसे [ चित्] चेतनामात्र सत्ता [ नियतं] अवश्यकर [ दृग्ज्ञप्तिरूपा अस्तु] दर्शन ऐसा नाम, ज्ञान ऐसा नाम दो नाम संज्ञाके द्वारा उपदिष्ट होओ। भावार्थ इस प्रकार है कि एक सत्त्वरूप चेतना. उसके नाम दो - एक तो दर्शन ऐसा नाम, दूसरा ज्ञान ऐसा नाम। ऐसा भेद होता है तो होओ, विरुद्ध तो कुछ नहीं है ऐसे अर्थको दृढ़ करते है-'चेत् जगति चेतना अद्वैता अपि तत् दृग्ज्ञप्तिरूपं त्यजेत्। सा अस्तित्वम् एव त्यजेत्'' [चेत् ] जो ऐसा है कि [जगति] त्रैलोक्यवर्ती जीवोंमें प्रगट है [ चेतना] स्वपरग्राहक शक्ति। कैसी है ? [अद्वैता अपि] एक प्रकाशरूप है। तथापि [दृग्ज्ञप्तिरूपं त्यजेत्] दर्शनरूप चेतना ज्ञानरूप चेतना ऐसे दो नामोंको छोड़े तो उसमें तीन दोष उत्पन्न होते हैं। प्रथम दोष – “सा अस्तित्वम् एव त्यजेत्' [ सा] वह चेतना [ अस्तित्वम् एव त्यजेत् ] अपने सत्त्वको अवश्य छोड़े। भावार्थ इस प्रकार है कि चेतना सत्त्व नहीं है ऐसा भाव प्राप्त होगा। किस कारणसे ? “सामान्यविशेषरूपविरहात् [सामान्य] सत्तामात्र [विशेष] पर्यायरूप, उनके [विरहात्] रहितपनाके कारण। भावार्थ इस प्रकार है कि जिस प्रकार समस्त जीवादि वस्तु सत्त्वरूप है, वही सत्त्व पर्यायरूप है। उसी प्रकार चेतना अनादि-निधन सत्तास्वरूप वस्तुमात्र निर्विकल्प है। इस कारण चेतनाका दर्शन ऐसा नाम कहा जाता है। कारण कि समस्त ज्ञेय वस्तुको ग्रहण करती है। जिस तिस ज्ञेयाकाररूप परिणमती है। ज्ञेयाकाररूप परिणमन चेतनाकी पर्याय है, तिसरूप परिणमती है, इसलिए चेतनाका ज्ञान ऐसा नाम है। ऐसी दो अवस्थाओंको छोड़ दे तो चेतना वस्तु नहीं है ऐसी प्रतीति उत्पन्न हो जाय। यहाँ कोई आशंका करेगा कि चेतना नहीं तो नहीं रहो, जीवद्रव्य तो विद्यमान है ? उत्तर इस प्रकार है कि चेतनामात्रके द्वारा जीवद्रव्य साधा है। इस कारण उस चेतनाके सिद्ध हुए बिना जीवद्रव्य भी सिद्ध नहीं होगा अथवा जो सिद्ध होगा तो वह पुद्गलद्रव्यके समान अचेतन सिद्ध होगा, चेतन नहीं सिद्ध होगा। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008397
Book TitleSamaysara Kalash
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size3 MB
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