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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates १६० समयसार-कलश [भगवान् श्री कुन्द-कुन्द भावार्थ इस प्रकार है कि जिस प्रकार करोंतके बारबार चालू करनेसे पुद्गलवस्तु काष्ठ आदि दो खण्ड हो जाता है, उसी प्रकार भेदज्ञानके द्वारा जीव-पुद्गलको बारबार भिन्न भिन्न अनुभव करनेपर भिन्न भिन्न हो जाते हैं। इसलिए भेदज्ञान उपादेय है।। १-१८०।। [स्रग्धरा] प्रज्ञाछेत्री शितेयं कथमपि निपुणैः पातिता सावधान: सूक्ष्मेऽन्तःसन्धिबन्धे निपतति रभसादात्मकर्मोभयस्य। आत्मानं मग्नमंतःस्थिरविशदलसद्धाम्नि चैतन्यपूरे बन्धं चाज्ञानभावे नियमितमभितः कुर्वती भिन्नभिन्नौ।। २-१८१ ।। [हरिगीत] सूक्ष्म अन्तःसंधि में अति तीक्ष्ण प्रज्ञाछैनि को। अति निपुणता से डालकर अति निपुणजन ने बन्धको।। अति भिन्न करके आतमा से आतमा में जम गये। वे ही विवेकी धन्य हैं जो भवजलधि से तर गये।।१८१ ।। खंडान्वय सहित अर्थ:- भावार्थ इस प्रकार है कि जीवद्रव्य तथा कर्मपर्यायरूप परिणत पुद्गलद्रव्यका पिण्ड, इन दोनोंका एक बन्ध पर्यायरूप सम्बन्ध अनादि से चला आया है सो ऐसा सम्बन्ध जब छूट जाय, जीवद्रव्य अपने शुद्ध स्वरूपरूप परिणमें अनन्त चतुष्टयरूप परिणमें तथा पुद्गलद्रव्य ज्ञानावरणादि कर्मपर्यायको छोड़े-जीवके प्रदेशोंसे सर्वथा अबन्धरूप होकर सम्बन्ध छूट जाय। जीव-पुद्गल दोनों भिन्न-भिन्न हो जावें, उसका नाम मोक्ष कहनेमें आता है। उस भिन्नभिन्न होनेका कारण ऐसा जो मोह-राग-द्वेष इत्यादि विभावरूप अशुद्ध परिणतिके मिटनेपर जीवका शुद्धत्वरूप परिणमन। उसका विवरण इस प्रकार है कि शुद्धत्वपरिणमन सर्वथा सकल कर्मोंके क्षय करनेका कारण है। ऐसा शुद्धत्वपरिणमन सर्वथा द्रव्यका परिणमनरूप है, निर्विकल्परूप है, इसलिए वचनके द्वारा कहनेका समर्थपना नहीं है। इस कारण इस रूपमें कहते हैं कि जीवके शुद्ध स्वरूपके अनुभवरूप परिणमाता है ज्ञानगुण सो मोक्षका कारण है। उसका समाधान ऐसा है कि शुद्ध स्वरूपके अनुभवरूप है जो ज्ञान वह जीवके शुद्धत्व परिणमनको सर्वथा लिए हुए है। जिसको शुद्धत्वपरिणमन होता है उस जीवको शुद्ध स्वरूपका अनुभव अवश्य होता है, धोखा नहीं, अन्यथा सर्वथा प्रकार अनुभव नहीं होता। इसलिए शुद्ध स्वरूपका अनुभव मोक्षका कारण है। यहाँ अनेक प्रकारके मिथ्यादृष्टि जीव नाना प्रकारके विकल्प करते हैं, सो उनका समाधान करते हैं। कोई कहते हैं कि जीवका स्वरूप बन्धका स्वरूप जान लेना मोक्षमार्ग है। कोई कहते हैं कि बन्धका स्वरूप जानकर ऐसा चिन्तवन करना कि बन्ध कब छूटेगा कैसे छूटेगा ऐसी चिन्ता मोक्षका कारण है। ऐसा कहते हैं सो वे जीव झूठे हैं- मथ्यादृष्टि हैं। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008397
Book TitleSamaysara Kalash
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size3 MB
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