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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates कहान जैन शास्त्रमाला] निर्जरा-अधिकार १४१ [शार्दूलविक्रीडित] प्राणोच्छेदमुदाहरन्ति मरणं प्राणाः किलास्यात्मनो ज्ञानं तत्स्वयमेव शाश्वततया नोच्छिद्यते जातुचित्। तस्यातो मरणं न किञ्चन भवेत्तगीः कुतो ज्ञानिनो निश्शङ्कः सततं स्वयं स सहजं ज्ञानं सदा विन्दति।। २७-१५९ ।। [हरिगीत] मृत्यु कहे सारा जगत बस प्राण के उच्छेद को। ज्ञान ही है प्राण मम उसका नहीं उच्छेद हो।। तब मरण भय हो किस तरह हों ज्ञानिजन भयभीत क्यों। वे तो सतत निःशंक हो निज ज्ञानका अनुभव करें।।१५९ ।। खंडान्वय सहित अर्थ:- “स: ज्ञानं सदा विन्दति'' [ सः] सम्यग्दृष्टि जीव [ ज्ञानं] शुद्ध चैतन्यवस्तुको [ सदा] निरंतर [ विन्दति] आस्वादता है। कैसा है ज्ञान ? ''स्वयं'' अनादिसिद्ध है। और कैसा है ? ''सततं'' अखंडधारा प्रवाहरूप है। और कैसा है ? "सहजं'' बिना कारण सहज ही निष्पन्न है। कैसा है सम्यग्दृष्टि जीव ? ''निःशंक:'' मरणशंकाके दोषसे रहित है। क्या विचारता हुआ निःशंक है ? "अतः तस्य मरणं किञ्चन न भवेत्, ज्ञानिनः तद्भीः कुतः'' [अतः] इस कारणसे [तस्य] आत्मद्रव्यके [ मरणं] प्राणवियोग [किञ्चन] सूक्ष्ममात्र [ न भवेत्] नहीं होता, तिस कारण [ ज्ञानिनः] सम्यग्दृष्टिके [ तगी: ] मरणका भय [ कुतः] कहाँसे होवे ? अपितु नहीं होता। जिस कारणसे ''प्राणोच्छेदम् मरणं उदाहरन्ति'' [प्राणोच्छेदम् ] इन्द्रिय, बल, उच्छवास , आयु ऐसे हैं जो प्राण , उनका विनाश ऐसा जो [ मरणं ] मरण कहने में आता है [ उदाहरन्ति] अरिहंतदेव ऐसा कहते हैं। “किल आत्मनः ज्ञानं प्राणाः'' [किल ] निश्चयसे [आत्मनः ] जीवद्रव्यका [ ज्ञानं प्राणाः] शुद्ध चैतन्यमात्र प्राण है। 'तत् जातुचित् न उच्छिद्यते'' [ तत्] शुद्धज्ञान [ जातुचित्] किसी कालमें [न उच्छिद्यते] नहीं विनशता है। किस कारणसे ? — “स्वयम् एव शाश्वततया'' [ स्वयम् एव ] बिना ही जतन [ शाश्वततया] अविनश्वर है तिस कारणसे। भावार्थ इस प्रकार है कि सभी मिथ्यादृष्टि जीवोंको मरणका भय होता है। सम्यग्दृष्टि जीव ऐसा अनुभवता है कि मेरा शुद्ध चैतन्यमात्र स्वरूप है सो तो विनशता नहीं, प्राण नष्ट होते हैं सो तो मेरा स्वरूप है ही नहीं, पुद्गलका स्वरूप है। इसलिए मेरा मरण होवे तो डरूँ मैं किसलिए डरूँ, मेरा स्वरूप शाश्वत है।। २७-१५९ ।। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008397
Book TitleSamaysara Kalash
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size3 MB
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