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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates कहान जैन शास्त्रमाला] निर्जरा-अधिकार १२७ [वसन्ततिलका इत्थं परिग्रहमपास्य समस्तमेव सामान्यत: स्वपरयोरविवेकहेतुम्। अज्ञानमुज्झितुमना अधुना विशेषाद् भूयस्तमेव परिहर्तुमयं प्रवृत्तः।। १३-१४५।। [सोरठा] सभी परिग्रह त्याग इस प्रकार सामान्य से। विविध वस्तु परित्याग अब आगे विस्तार से।।१४५।। खंडान्वय सहित अर्थ:- "अधुना अयं भूयः प्रवृत्तः'' [ अधुना] यहाँसे आरंभ कर [अयं] ग्रंथका कर्ता [भूयः प्रवृत्तः] कुछ विशेष कहनेका उद्यम करता है। कैसा है ग्रंथका कर्ता ? "अज्ञानम् उज्झितुमना'' [अज्ञानम्] जीवका कर्मका एकत्वबुद्धिरूप मिथ्यात्वभाव वह [उज्झितुमना] जैसे छूटे वैसा है अभिप्राय जिसका ऐसा है। क्या कहना चाहता है ? "तम् एव विशेषात् परिहर्तुम्'' [तम् एव] जितना परद्रव्यरूप परिग्रह है उसको [ विशेषात् परिहर्तुम् ] भिन्न भिन्न नामोंके विवरण सहित छोड़ने के लिए अथवा छुड़ाने के लिए। यहाँ तक कहा सो क्या कहा ? ''इत्थं समस्तम् एव परिग्रहम् सामान्यतः अपास्य'' [इत्थं] यहाँ तक जो कुछ कहा सो ऐसा कहा [ समस्तम् एव परिग्रहम् ] जितनी पुद्गलकर्मकी उपाधिरूप सामग्री उसको [ सामान्यतः अपास्य] जो कुछ परद्रव्य सामग्री है सो त्याज्य है ऐसा कहकर परद्रव्यका त्याग कहा। अब विशेषरूप कहते हैं। विशेषार्थ इस प्रकार है - जितना परद्रव्य उतना त्याज्य है ऐसा कहा। अब क्रोध परद्रव्य है, इसलिए त्याज्य है। मान परद्रव्य है, इसलिए त्याज्य है इत्यादि। भोजन परद्रव्य है, इसलिए त्याज्य है। पानी पीना परद्रव्य है, इसलिए त्याज्य है। कैसा है परद्रव्य परिग्रह ? “स्वपरयो: अविवेकहेतुम्'' [स्व] शुद्ध चिद्रूपमात्र वस्तु [परयोः] द्रव्यकर्म, भावकर्म, नोकर्म उनके [अविवेक] एकत्वरूप संस्कार उसका [हेतुम्] कारण है। भावार्थ इस प्रकार है कि मिथ्यादृष्टि जीवकी जीव कर्ममें एकत्वबुद्धि है, इसलिए मिथ्यादृष्टिके पर द्रव्यका परिग्रह घटित होता है। सम्यग्दृष्टि जीवके भेदबुद्धि है, इसलिए पर द्रव्यका परिग्रह घटित नहीं होता। ऐसा अर्थ यहाँ से लेकर कहा जायगा।।१३–१४५ ।। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008397
Book TitleSamaysara Kalash
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size3 MB
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