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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates कहान जैन शास्त्रमाला] संवर-अधिकार [ मंदाक्रान्ता] भेदज्ञानोच्छलनकलनाच्छुद्धतत्त्वोपलम्भाद्रागग्रामप्रलयकरणात्कर्मणां संवरेण। बिभ्रत्तोषं परमममलालोकमम्लानमेकं ज्ञानं ज्ञाने नियतमुदितं शाश्वतोद्योतमेतत्।।८-१३२।। [रोला] भेदज्ञान से शुद्धतत्व की उपलब्धि हो। शुद्धतत्व की उपलब्धि से राग नाश हो।। रागनाश से कर्मनाश अर कर्मनाश से। ज्ञान ज्ञान में थिर होकर शाश्वत हो जावे।।१३२ ।। खंडान्वय सहित अर्थ:- "एतत् ज्ञानं उदितं'' [ एतत्] प्रत्यक्ष विद्यमान [ ज्ञानं] शुद्ध चैतन्यप्रकाश [उदितं] आस्रवका निरोध करके प्रगट हुआ। कैसा है ? ''ज्ञाने नियतम्'' अनंत काल से परिणमता था अशुद्ध रागादि विभावरूप, वह काललब्धि पाकर अपने शुद्धस्वरूप परिणमा है। और कैसा है ? "शाश्वतोद्योतम्'' अविनश्वर प्रकाश है जिसका, ऐसा है। और कैसा है ? "तोषं बिभ्रत्'' अतीन्द्रिय सुखरूप परिणमा है। और कैसा है ? ''परमम्'' उत्कृष्ट है। और कैसा है ? ''अमलालोकम्'' सर्वथा प्रकार सर्व काल सर्व त्रैलोक्यमें निर्मल है – साक्षात् शुद्ध है। और कैसा है ? ''अम्लानम्'' सदा प्रकाशरूप है। और कैसा है ? ''एक'' निर्विकल्प है। शुद्ध ज्ञान ऐसा जिस प्रकार हुआ है उसी प्रकार कहते है -“कर्मणां संवरेण''ज्ञानावरणादिरूप आस्रवते थे जो कर्मपुद्गल उनके निरोधसे। कर्म का निरोध जिस प्रकार हुआ है उस प्रकार कहते है- '' रागग्रामप्रलयकरणात्'' [ राग] राग, द्वेष, मोहरूप अशुद्ध विभाव परिणाम, उनका [ग्राम] समूह - असंख्यात लोकमात्र भेद, उनका [प्रलय] मूलसे सत्तानाश, उसके [करणात् ] करनेसे। ऐसा भी किस कारणसे ? "शुद्धतत्त्वोपलम्भात्'' [शुद्धतत्त्व ] शुद्ध चैतन्यवस्तु, उसकी [ उपलम्भात् ] साक्षात् प्राप्ति , उससे। ऐसा भी किस कारण से ? ''भेदज्ञानोच्छलनकलनात्'' [भेदज्ञान] शुद्धस्वरूप ज्ञान, उसका [उच्छलन] प्रगटपना, उसका [कलनात्] निरंतर अभ्यास, उससे। भावार्थ इस प्रकार है – शुद्ध स्वरूपका अनुभव उपादेय है।। ८-१३२ ।। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008397
Book TitleSamaysara Kalash
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size3 MB
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