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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates कहान जैन शास्त्रमाला] पुण्य-पाप-अधिकार [शार्दूलविक्रीडित] संन्यस्तव्यमिदं समस्तमपि तत्कमैव मोक्षार्थिना संन्यस्ते सति तत्र का किल कथा पुण्यस्य पापस्य वा। सम्यक्त्वादिनिजस्वभावभवनान्मोक्षस्य हेतुर्भवननैष्कर्म्यप्रतिबद्धमुद्धतरसं ज्ञानं स्वयं धावति।।१०-१०९ ।। [हरिगीत] त्याज्य ही है जब मुमुक्षु के लिए सब कर्म ये। तब पुण्य एवं पाप की यह बात करनी किसलिए।। निज आतमा के लक्ष्य से जब परिणमन होजायगा। निष्कर्म में ही रस जगे तब ज्ञान दौड़ा आयगा।।१०९।। खंडान्वय सहित अर्थ:- "मोक्षार्थिना तत् इदं समस्तम् अपि कर्म संन्यस्तव्यम्'' [ मोक्षार्थिना] सकल कर्मक्षयलक्षण मोक्ष-अतीन्द्रिय पद, उसमें जो अनंत सुख उसको उपादेय अनुभवता है ऐसा है जो कोई जीव उसके द्वारा [ तत् इदं] वही कर्म जो पहले ही कहा था [समस्तम् अपि] जितना शुभक्रियारूप-अशुभक्रियारूप अंतर्जल्परूप-बहिर्जल्परूप इत्यादि करतूतिरूप [कर्म] क्रिया अथवा ज्ञानावरणादि पुद्गलका पिण्ड, अशुद्ध रागादिरूप जीवके परिणाम, ऐसा कर्म [संन्यस्तव्यम् ] जीवस्वरूपका घातक है ऐसा जानकर आमूलचूल त्याज्य है। "तत्र संन्यस्ते सति'' उस समस्त ही कर्मका त्याग होनेपर "पुण्यस्य वा पापस्य वा का कथा'' पुण्यका पापका कौन भेद रहा ? भावार्थ इस प्रकार है - समस्त कर्मजाति हेय है, पुण्यपापके विवरणकी क्या बात रही। “किल'' ऐसी बात निश्चयसे जानो, पुण्यकर्म भला ऐसी भ्रान्ति मत करो। "ज्ञानं मोक्षस्य हेतु: भवन् स्वयं धावति'' [ज्ञानं] आत्माका शुद्धचेतनारूप परिणमन [ मोक्षस्य ] सकल कर्मक्षयलक्षण ऐसी अवस्थाका [ हेतु: भवन्] कारण होता हुआ [स्वयं धावति] स्वयं दोड़ता है ऐसा सहज है। भावार्थ इस प्रकार है - जैसे सूर्यका प्रकाश होनेपर सहज ही अंधकार मिटता है वैसे ही जीवके शुद्धचेतनारूप परिणमनेपर सहज ही समस्त विकल्प मिटते हैं, ज्ञानावरणादि कर्म अकर्मरूप परिणमते हैं, रागादि अशुद्ध परिणाम मिटता है। कैसा है ज्ञान ? "नैष्कर्म्यप्रतिबद्धम्'' निर्विकल्पस्वरूप है। और कैसा है ? "उद्धतरसं'' प्रगटरूपसे चैतन्यस्वरूप है। कैसा होनेसे मोक्षका कारण होता है ? "सम्यक्त्वादिनिजस्वभावभवनात्' [ सम्यक्त्व] जीवका गुण सम्यग्दर्शन [आदि] सम्यग्ज्ञान सम्यक्चारित्र ऐसे हैं जो [निजस्वभाव ] जीवके क्षायिक गुण उनके [ भवनात् ] प्रगटपनेके कारण। भावार्थ इस प्रकार है – कोई आशंका करेगा कि मोक्षमार्ग सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र इन तीन का मिला हुआ है, यहाँ ज्ञानमात्र मोक्षमार्ग कहा सो क्यों कहा ? उसका समाधान ऐसा है - शुद्धस्वरूप ज्ञानमें सम्यग्दर्शन सम्यक्चारित्र सहज ही गर्भित है, इसलिए दोष तो कुछ नहीं, गुण है।। १०–१०९ ।। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008397
Book TitleSamaysara Kalash
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size3 MB
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