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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates -४पुण्य-पाप अधिकार 5555555555555555555555555559 [ द्रुतविलंबित] तदथ कर्म शुभाशुभभेदतो द्वितयतां गतमैक्यमुपानयन्। ग्लपितनिर्भरमोहरजा अयं स्वयमुदेत्यवबोधसुधाप्लवः।।१-१०० ।। [हरिगीत] शुभ अर अशुभ के भेद से जो दोपने को प्राप्त हो। वह कर्म भी जिसके उदय से एकता को प्राप्त हो।। जब मोह रज का नाश कर सम्यक् सहित वह स्वयं ही। जग में उदय को प्राप्त हो वह सुधा निर्झर ज्ञान ही।।१००।। खंडान्वय सहित अर्थ:- 'अयं अवबोधसुधाप्लवः स्वयम् उदेति'' [अयं] विद्यमान [अवबोध ] शुद्ध ज्ञानप्रकाश, वही है [सुधाप्लव:] चंद्रमा [स्वयम् उदेति] जैसा है वैसा अपने तेजःपुंजके द्वारा प्रगट होता है। कैसा है ? "ग्लपितनिर्भरमोहरजा'' [ग्लपित] दूर किया है[ निर्भर ] अतिशय सघन [ मोहरजा] मिथ्यात्व-अंधकार जिसने, ऐसा है। भावार्थ इस प्रकार है - चन्द्रमाका उदय होनेपर अंधकार मिटता है, शुद्ध ज्ञानप्रकाश होनेपर मिथ्यात्वपरिणमन मिटता है। क्या करता हुआ ज्ञानचंद्रमा उदय करता है ?- 'अथ तत् कर्म ऐक्यं उपानयन्' [अथ] यहाँ से लेकर [ तत् कर्म] रागादि अशुद्ध चेतना परिणामरूप अथवा ज्ञानावरणादि पुद्गलपिंडरूप कर्म, इनका [ ऐक्यम् उपानयन्] एकत्वपना साधता हुआ। कैसा है कर्म ? ''द्वितयतां गतम्'' दोपना करता है। कैसा दोपना ? ''शुभाशुभभेदतः'' [शुभ ] भला [अशुभ ] बुरा ऐसा [भेदतः] भेद करता है। भावार्थ इस प्रकार है -किसी मिथ्यादृष्टि जीवका अभिप्राय ऐसा है जो दया, व्रत, तप, शील, संयम आदिसे देहरूप लेकर जितनी है शुभक्रिया और शुभक्रियाके अनुसार है उसरूप जो शुभोपयोगपरिणाम तथा उन परिणामोंको निमित्तकर बाँधता है जो साता कर्म आदिसे लेकर पुण्यरूप पुद्गलपिण्ड, वे भले हैं, जीवको सुखकारी हैं। हिंसा विषय कषायरूप जितनी है क्रिया, उस क्रियाके अनुसार अशुभोपयोगरूप संक्लेशपरिणाम, उस परिणामके निमित्तसे होता है जो असाताकर्म आदिसे लेकर पापबंधरूप पुद्गलपिण्ड, वे बुरे है, जीवको दुःखकर्ता हैं। ऐसा कोई जीव मानता है। उसके प्रति समाधान ऐसा है कि जैसे अशुभकर्म जीवको दुःख करता है उसी प्रकार शुभकर्म भी जीवको दुःख करता है। कर्ममें तो भला कोई नहीं है। अपने मोहको लिये मिथ्यादष्टि जीव कर्मको भला करके मानता है। ऐसी भेदप्रतीति शुद्ध स्वरूपका अनुभव हुआ तबसे पाई जाती है।। ११००।। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008397
Book TitleSamaysara Kalash
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size3 MB
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