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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates ७४ समयसार-कलश [भगवान् श्री कुन्द-कुन्द [वसंततिलका] स्वेच्छासमुच्छलदनल्पविकल्पजालामेवं व्यतीत्य महतीं नयपक्षकक्षाम्। अन्तर्बहि: समरसैकरसस्वभावं स्वं भावमेकमुपयात्यनुभूतिमात्रम्।। ४५-९०।। [हरिगीत] उठ रहा जिसमें है अनन्ते विकल्पों का काल है। वह वृहद् नयपक्षकक्षा विकट है विकराल है ।। उल्लंघन कर उसे बुध अनुभूतिमय निज भाव को। हो प्राप्त अन्तर्बाह्य से समरसी एक स्वभाव को।।९०।। खंडान्वय सहित अर्थः- “एवं [ सः तत्त्ववेदी ] एकम् स्वं भावम् उपयाति'' [एवं ] पूर्वोक्त प्रकार [ सः] सम्यग्दृष्टि जीव-[तत्त्ववेदी] शुद्धस्वरूपका अनुभवशील , [ एकम् स्वं भावम् उपयाति] एक शुद्धस्वरूप चिद्रूप आत्माको आस्वादता है। कैसा है आत्मा ? 'अन्तः बहि: समरसैकरसस्वभावं'' [अन्तः] भीतर [बहिः ] बाहर [ समरस] तुल्यरूप ऐसी [एकरस] चेतनशक्ति ऐसा है [ स्वभावं] सहज रूप जिसका ऐसा है। किं कृत्वा- क्या करके शुद्धस्वरूप पाता है ? "नयपक्षकक्षाम् व्यतीत्य'' [नय] द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिक भेद, उनका [ पक्ष ] अंगीकार, उसकी [ कक्षाम् ] समूह है-अनन्त नयविकल्प हैं, उनको [ व्यतीत्य] दूरसे ही छोड़कर। भावार्थ इस प्रकार है - अनुभव निर्विकल्प है। उस अनुभवके कालमें समस्त विकल्प छूट जाते हैं। [नयपक्षकक्षा] कैसी है ? "महतीं'' जितने बाह्य-अभ्यन्तर बुद्धिके विकल्प उतने ही नयभेद ऐसी है। और कैसी है ? "स्वेच्छासमुच्छलदनल्पविकल्पजालाम्'' [स्वेच्छा] बिना ही उपजाए गये [ समुच्छलत्] उपजते हैं ऐसे जो [अनल्प] अति बहु [विकल्प] निर्भेद वस्तुमें भेदकल्पना, उसका [ जालाम्] समूह है जिसमें ऐसी है। कैसा है आत्मस्वरूप ? "अनुभूतिमात्रम्'' अतीन्द्रिय सुखस्वरूप है।। ४५-९०।। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008397
Book TitleSamaysara Kalash
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size3 MB
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