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________________ अजीव अधिकार कारण है। बंध पाप का होवे या पुण्य का, इनमें बन्ध की अपेक्षा अंतर मानना ही मिथ्यात्व है। आचार्य कुंदकुंद ने समयसार में गाथा १४६ में पुण्य के बन्ध को सोने की बेडी कहा है, जो लोहे की बेडी के समान ही दुःखदायक एवं बन्धन का काम करती है। अतः शुभोपयोग को धर्मस्वरूप नहीं मानना चाहिए। पुण्य-पाप के यथार्थ स्वरूप-बोध के लिये समयसार के पुण्यपाप अधिकार का अध्ययन अवश्य करें। देह की स्तुति से आत्मा की स्तुति नहीं होती - नाचेतने स्तुते देहे स्तुतोऽस्ति ज्ञानलक्षणः। न कोशे वर्णिते नूनं सायकस्यास्ति वर्णना ।।१००॥ अन्वय :- अचेतने देहे स्तुते ज्ञानलक्षण: (जीवः) स्तुतः न अस्ति यथा कोशे वर्णिते नूनं सायकस्य वर्णना न अस्ति। सरलार्थ :- अचेतन देह की स्तुति करने पर जीव की स्तुति नहीं होती; क्योंकि म्यान के सौंदर्य का वर्णन करने से म्यान के भीतर रहनेवाली तलवार का वर्णन नहीं होता। भावार्थ :- इसीप्रकार का भाव समयसार गाथा-३० में भी आया है। अन्तर मात्र इतना है कि यहाँ म्यान व तलवार का उदाहरण दिया गया है और वहाँ नगर व राजा का । उस मूल गाथा का अर्थ इसप्रकार है - “जैसे नगर का वर्णन करने पर भी राजा का वर्णन नहीं किया जाता, उसीप्रकार शरीर के गुण का स्तवन करने पर केवली के गुणों का स्तवन नहीं होता।" लक्षण ही भेदज्ञान का सच्चा साधन - यत्र प्रतीयमानेऽपि न यो जातु प्रतीयते । स ततः सर्वथा भिन्नो रसाद् रूपमिव स्फुटम् ।।१०१।। काये प्रतीयमानेऽपि चेतनो न प्रतीयते । यतस्ततस्ततो भिन्नो न भिन्नो ज्ञानलक्षणात् ।।१०२।। अन्वय :- यः यत्र प्रतीयमानेअपि न जातु प्रतीयते सः ततः स्फुटं सर्वथा भिन्नः (भवति) रसात् रूपम् इव। ___ यतः काये प्रतीयमाने अपि चेतन: न प्रतीयते ततः (चेतनः) ततः (कायात्) भिन्नः (अस्ति)। (चेतन:) ज्ञान-लक्षणात् भिन्नः न (अस्ति)। - सरलार्थ :- जो जिसमें प्रतीयमान होनेपर भी उसमें वह स्पष्ट प्रतीत नहीं होता, वह जिसमें प्रतीयमान हो रहा है, उससे सर्वथा भिन्न होता है; जैसे रस से रूप भिन्न होता है। चूँकि देह में चेतन प्रतीयमान होनेपर भी चेतन कभी देह में स्पष्ट प्रतीत नहीं होता, इसलिए वह [C:/PM65/smarakpm65/annaji/yogsar prabhat.p65/83]
SR No.008391
Book TitleYogasara Prabhrut
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size920 KB
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