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________________ 49 ये तो सोचा ही नहीं देने की गुहार करता रहा। फिर भी राजा मधु ने उसे नहीं लौटाया । ऐसा अन्याय करने पर भी राजा मधु ने अन्त में अपनी भूल सुधार कर स्वर्ग समान भोगभूमि में उत्तम गति प्राप्त की।" तीसरा बोला - "इसीलिए तो मैं कहता हूँ कि अरे भैया ! इन चक्करों से जब छूट पावे, तभी अच्छा । दुर्व्यसनों से पल्ला छुड़ाना आसान काम नहीं है। जंग जीतना आसान है, पर व्यसनों से पार पाना कठिन है। जो दिन में दस-दस पैग पीता हो, दिन-रात शराब के नशे में धुत्त रहता हो; मुँह से रेलगाड़ी के कोयले के इंजन की तरह लगातार धुंआ छोड़ता ही रहता हो; रात-रात भर जाग कर नृत्यांगनाओं के नृत्य-गान देखतासुनता रहता हो; दिन भर आँखों में नींद भरे अर्द्ध विक्षिप्त-सा पड़ा रहता हो, जिसका न खाने-पीने का सही समय हो, न सोने-जागने का कोई निश्चित समय - ऐसा व्यक्ति जब भी, जो भी, जितनी भी बुराईयों का त्याग करता है, अच्छा ही है। आप ही सोचो।" चौथा बोला - "यह सब ठीक है। परन्तु यह तो श्मशानियाँ वैराग्य है। जब डॉक्टर ने जवाब दे दिया कि - जाओ ! घर जाओ !! अब मेरे पास आने की जरूरत नहीं है। कहीं भी/किसी भी डॉक्टर के पास जाने की जरूरत नहीं है। बस, दो-चार माह और पीलो, खालो और मजे उड़ालो, फिर तो.....कहते-कहते डॉक्टर चुप हो गया। डॉक्टर को चुप देख धनेश ने लडखडाती जबान में कहा - “फिर...क्या....?" डॉक्टर बोला - "फिर तो जन्म-जन्मान्तरों में नरक और पशु पर्याय में जाकर शराब तो क्या ? पानी की एक-एक बूंद को और अन्न के एक-एक दाने को भी तरसना ही है।" बीच में बात काटते हुए तीसरे ने पुनः पूछा - "और क्या-क्या कहा था डॉक्टर साहब ने?" पाप से घृणा करो, पापी से नहीं चौथे का उत्तर था - "अरे ! उन्होंने साफ-साफ कह दिया - धनेश! सिगरेट व शराब पीने से तुम्हारे दोनों फेफड़े जर्जर हो गये हैं, लीवर ने काम करना बन्द कर दिया है। मांसाहार से तुम्हारी आंतें बिल्कुल खराब हो गई हैं। बाजारू औरतों के सम्पर्क से तुम्हें 'एड्स' जैसी खतरनाक जानलेवा बीमारी हो सकती है। सिगरेट, सुरा और सुन्दरी ने तुम्हारे अंग-अंग को क्षीण कर दिया है। जितने वर्ष तुम जी चुके हो, अब उतने महीने भी तुम्हारे जीने की आशा नहीं है।" पाँचवाँ बोल उठा - “अच्छा ! यह बात है, तभी तो मैं कहूँ कि यह पश्चिम से सूरज कैसे निकल आया ? अब समझ में आया कि मौत को माथे पर मँडराता देख धर्मात्मा बनकर परमात्मा को प्रसन्न करने का प्रयास किया जा रहा है; पर ऐसे पापियों से परमात्मा प्रसन्न होनेवाले नहीं हैं। भगवान इतने भोले थोड़े ही हैं, इसने भी उनकी कब सुनी जो वे इसकी सुनेंगे।" चौथे ने पुन: कहा - "अरे भाई ! तुम्हें अकेले उसी से इतनी चिढ़ क्यों है ? हम-तुम भी तो उसी थैली के चट्टे-बट्टे हैं। कोई दो कदम आगे तो कोई दो कदम पीछे। हो सकता है हम उस स्टेज पर भी न पहुँचें, हमें अपनी ओर भी तो देखना चाहिए। ऐसा न हो कि हम कुत्ते की मौत मरें और कान में धर्म के दो शब्द सुनाना तो दूर, कोई मुँह में पानी की दो बूंदें डालने वाला भी न मिले।" ___इसी बात का समर्थन करते हुए छठवाँ बोला - "अरे भाई ! ऐसी क्या बात करते हो? आज जो महान हैं, वे भी तो कभी न कभी इसी तरह भूले-भटके ही थे। तभी तो वे संसार में जन्म-मरण करते रहे। जब संभले-सुधरे, तभी तो उन्हें भी मोक्ष मिला। इसीलिए तो कहा है कि "पाप से घणा करो, पापी से नहीं।" पापी तो कभी भी परमात्मा बन सकता है। भगवान महावीर के जीव को ही देख लो ! कहाँ पुरुरवा भील जैसा
SR No.008390
Book TitleYe to Socha hi Nahi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size317 KB
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