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________________ हरिवंश कथा से ~ त्रेसठ शलाका महापुरुषों में आते हैं - २४ तीर्थंकर, १२ चक्रवर्ती, ९ नारायण, ९ प्रतिनारायण और ९ बलभद्र - ये ६३ शलाका पुरुष अपनेअपने युग में सम्यक् पुरुषार्थ करके असाधारण पराक्रम (साहस) द्वारा विविध प्रकार के अनुकरणीय आदर्श उपस्थित करते हैं। जैन और जैनेत्तर पुराणों में इन सबका विस्तृत वर्णन है। लेखक के अन्य महत्त्वपूर्ण प्रकाशन मौलिक कृतियाँ अब तक प्रकाशित प्रतियाँ कीमत ०१. संस्कार (हिन्दी, मराठी, गुजराती) ५६ हजार ५०० १८.०० ०२.विदाई की बेला (हिन्दी, मराठी, गुजराती) ८५ हजार १२.०० ०३. इन भावों का फल क्या होगा (हि. म., गु.) ५१ हजार १८.०० ०४. सुखी जीवन (हिन्दी) (नवीनतम कृति ) २३ हजार १६.०० ०५. णमोकार महामंत्र (हि., म., गु., क.) ६७ हजार ५०० ०६. जिनपूजन रहस्य (हि.,म., गु., क.) १लाख ७९ हजार २०० ४.०० ०७. सामान्य श्रावकाचार (हि., म., गु..क.) ७१ हजार २०० ०८. पर से कुछ भी संबंध नहीं (हिन्दी) १० हजार ०९. बालबोध पाठमाला भाग-१(हि.म.गु.क.त.अं.) लाख ६६ हजार २०० २.०० १०. क्षत्रचूड़ामणि परिशीलन (नवीनतम) ८ हजार ३.०० ११. समयसार : मनीषियों की दृष्टि में (हिन्दी) ३ हजार ४.०० १२. द्रव्यदृष्टि (नवीन संस्करण) ५ हजार ४.०० १३. हरिवंश कथा (तीन संस्करण) १३ हजार ३०.०० १४. षट्कारक अनुशीलन ३ हजार १५. शलाका पुरुष पूर्वार्द्ध (दो संस्करण) ७ हजार २५.०० १६. शलाका पुरुष उत्तरार्द्ध (प्रथम संस्करण) ५ हजार १७. ऐसे क्या पाप किए (तीन संस्करण) ११ हजार १८. नींव का पत्थर (उपन्यास) ११ हजार १०.०० १९. पंचास्तिकाय (पद्यानुवाद) ५ हजार ३.०० २०. तीर्थंकर स्तवन ५ हजार २१. साधना-समाधि और सिद्धि २ हजार २२. ये तो सोचा ही नहीं (निबन्ध) ८ हजार १५.०० २३. जिन खोजा तिन पाइयाँ ३ हजार २४. यदि चूक७० गये तो ३ हजार १२.०० सम्पादित एवं अनूदित कृतियाँ (गुजराती से हिन्दी)२५ से ३६. प्रवचनरत्नाकर भाग - १ से ११ तक (सम्पूर्ण सेट) ३७. सम्यग्दर्शन प्रवचन ३ हजार १५.०० ३८. भक्तामर प्रवचन ३५ हजार ४०० १५.०० ३९. समाधिशतक प्रवचन ३हजार २०.०० ४०. पदार्थ विज्ञान (प्रवचनसार गाथा ९९ से १०२) ५ हजार २०० ४१. गागर में सागर (प्रवचन) २३ हजार ६०० ४२. अहिंसा : महावीर की दृष्टि में १ लाख ४१ हजार ४३. गुणस्थान-विवेचन २५ हजार ५०० २५.०० ४४. अहिंसा के पथ पर (कहानी संग्रह) २५ हजार २०० ४५. विचित्र महोत्सव (कहानी संग्रह) ९ हजार नौ बलभद्रों में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम और नौ नारायणों में लीला पुरुषोत्तम एवं कर्मवीर श्रीकृष्ण जो वैदिक और श्रमण संस्कृतियों के पुराणों में सर्वाधिक चर्चित हैं। इन लोक मान्य चरित्रों को साहित्यकारों ने भी क्षेत्र व काल की स्थितियों के अनुकूल अपनी-अपनी नैतिक व सैद्धान्तिक विचारधारा के अनुरूप अपनाया है। -- भारतीय पुराण साहित्य के अध्ययन और धार्मिक संस्कृति के अवलोकन से ज्ञात होता है कि भारतीय जन-जीवन में सदैव वीरपूजा होती रही है। चाहे वह पूजा धर्मवीर, दानवीर के रूप में हो अथवा शूरवीर या युद्धवीर के रूप में हो। जिन्होंने भी धर्म, समाज एवं राष्ट्र के हित में सम्पूर्ण शक्ति लगाकर साहस के काम किये, अपना सर्वस्व समर्पण किया, वे तत्कालीन समाज में सम्मान के पात्र तो हुये ही; आगे चलकर उनमें से बहुत से तो भगवान तथा देवी-देवताओं के रूप में आराध्य भी बन गये। -- जैनधर्म में तो आराध्य के रूप में या अर्चना-पूजा करने के लिये पूज्यता का मुख्य आधार वीतरागता एवं सर्वज्ञता को माना गया है; अतः जो गृहस्थपना छोड़कर मुनिधर्म अंगीकार कर निजस्वभाव की साधना करके मोहादि कर्मों का नाश कर केवलज्ञानी अरहंत एवं सिद्ध पद को प्राप्त
SR No.008389
Book TitleYadi Chuk Gaye To
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prasad Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages85
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size276 KB
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