SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निश्चय और व्यवहार वीतराग-विज्ञान भाग -३ उनकी गद्य शैली परिमार्जित, प्रौढ़ एवं सहज बोधगम्य है। उनकी शैली का सुन्दरतम रूप उनके मौलिक ग्रंथ मोक्षमार्गप्रकाशक में देखने को मिलता है। उनकी भाषा मूलरूप में ब्रज होते हुए भी उसमें खड़ी बोली का खड़ापन भी है और साथ ही स्थानीय रंगत भी । उनकी भाषा उनके भावों को वहन करने में पूर्ण समर्थ व परिमार्जित है। आपके संबंध में विशेष जानकारी के लिए “पण्डित टोडरमल : व्यक्तित्व और कर्तृत्व" नामक ग्रंथ देखना चाहिए। प्रस्तुत अंश मोक्षमार्गप्रकाशक के सप्तम अधिकार के आधार पर लिखा गया है। निश्चय-व्यवहार की विशेष जानकारी के लिए मोक्षमार्गप्रकाशक के सप्तम अधिकार का अध्ययन अवश्य करना चाहिए। निश्चय और व्यवहार गुमानीराम - पिताजी! कल आपने कहा था कि रत्नत्रय ही दुःख से मुक्ति का मार्ग (मोक्षमार्ग) है। मोक्षमार्ग तो दो हैं न, निश्चय मोक्षमार्ग और व्यवहार मोक्षमार्ग। पं. टोडरमलजी- नहीं बेटा ! मोक्षमार्ग दो नहीं हैं, मोक्षमार्ग का कथन (वर्णन) दो प्रकार से है। जहाँ सच्चे मोक्षमार्ग को मोक्षमार्ग कहा जाये, वह निश्चय मोक्षमार्ग है और जो मोक्षमार्ग तो है नहीं, परन्तु मोक्षमार्ग का निमित्त व सहचारी है, उसे उपचार से मोक्षमार्ग कहा जाये, वह व्यवहार मोक्षमार्ग है। क्योंकि निश्चय और व्यवहार का सब जगह यही लक्षण है : "सच्चे निरूपण को निश्चय कहते हैं और उपचरित निरूपण को व्यवहार।" समयसार में कहा है : व्यवहार अभूतार्थ (असत्यार्थ) है, क्योंकि वह सत्य स्वरूप का निरूपण नहीं करता है। निश्चय भूतार्थ (सत्यार्थ) है, क्योंकि वह वस्तुस्वरूप का सच्चा निरूपण करता है। गुमानीराम - मैं तो ऐसा जानता हूँ कि सिद्धसमान शुद्ध आत्मा का अनुभव करना निश्चय है और व्रत, शील, संयमादि प्रवृत्ति व्यवहार है। पं. टोडरमलजी - यह ठीक नहीं; क्योंकि “किसी द्रव्य-भाव का नाम निश्चय और किसी का व्यवहार" - ऐसा नहीं है, किन्तु “एक ही द्रव्य के भाव को उस स्वरूप में ही वर्णन करना निश्चय नय है और उपचार से उस द्रव्य के भाव को अन्य द्रव्य के भावस्वरूप वर्णन करना व्यवहार है।" जैसे - मिट्टी के घड़े को मिट्टी का कहना निश्चय और घी का संयोग देखकर उपचार से उसे घी का घड़ा कहना व्यवहार है। गुमानीराम - समयसार में तो शुद्धात्मा के अनुभव को निश्चय और व्रत, शील, संयमादि को व्यवहार कहा है। पं. टोडरमलजी - शुद्धात्मा का अनुभव सच्चा मोक्षमार्ग है, अत: उसे निश्चय मोक्षमार्ग कहा है। तथा व्रत, तप आदि मोक्षमार्ग नहीं हैं, इन्हें निमित्तादिक की अपेक्षा उपचार से मोक्षमार्ग कहा है; अत: इन्हें व्यवहार मोक्षमार्ग कहते हैं। अत: निश्चय नय से जो निरूपण किया हो, उसे सच्चा (सत्यार्थ) मानकर उसका श्रद्धान करना और व्यवहार नय से जो निरूपण किया हो. उसको असत्य (असत्यार्थ) मानकर उसका श्रद्धान छोड़ना । गुमानीराम - श्रद्धान तो निश्चय का रखें और प्रवृत्ति व्यवहाररूप । पं. टोडरमलजी - नहीं बेटा ! निश्चय का निश्चयरूप और व्यवहार का व्यवहाररूप श्रद्धान रखना चाहिए। और प्रवृत्ति में तो नय का प्रयोजन ही नहीं है। प्रवृत्ति तो द्रव्य की परिणति है। जिस द्रव्य की परिणति हो, उसको उसी की कहनेवाला निश्चयनय है, और उसे ही अन्य द्रव्य की कहनेवाला व्यवहारनय है। अत: यह श्रद्धान करना कि निश्चयनय का कथन सत्यार्थ है और व्यवहारनय का कथन उपचरित होने से असत्यार्थ है। गुमानीराम - आपने ऐसा क्यों कहा कि निश्चयनय का श्रद्धान करना और व्यवहार नय का श्रद्धान छोड़ना? पं. टोडरमलजी- सुनो! व्यवहारनय स्वद्रव्य परद्रव्य को व उनके भावों को व कारण-कार्यादिक को किसी को किसी में मिलाकर निरूपण करता है, इसप्रकार के श्रद्धान से मिथ्यात्व होता है; अत: व्यवहारनय त्याग करने योग्य है। 18
SR No.008388
Book TitleVitrag Vigyana Pathmala 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages25
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size131 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy