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________________ ५. पुरुषार्थसिद्धयुपाय भाषा टीका ६. आत्मानुशासन भाषा टीका ७. गोम्मटसार जीवकाण्ड भाषा टीका ८. गोम्मटसार कर्मकांड भाषा टीका LE ९. अर्थसंदृष्टि अधिकार १०. लब्धिसार भाषा टीका ११. क्षपणासार भाषा टीका १२. त्रिलोकसार भाषा टीका आपके संबंध में विशेष जानकारी के लिए “पंडित टोडरमल : व्यक्तित्व और कर्तृत्व” नामक ग्रंथ देखना चाहिए। प्रस्तुत पाठ मोक्षमार्ग प्रकाशक के अष्टम अधिकार के आधार पर लिखा गया है। सम्यज्ञानचंद्रिका चार अनुयोग छात्र - मोक्षमार्गप्रकाशक में किसकी कहानी है ? अध्यापक - मोक्षमार्गप्रकाशक में कहानी थोड़े ही है, उसमें तो मुक्ति का मार्ग बताया गया है। छात्र - अच्छा तो मोक्षमार्गप्रकाशक क्या शास्त्र नहीं है ? अध्यापक - क्यों? छात्र - शास्त्र में तो कथायें होती हैं। हमारे पिताजी तो कहते थे कि मन्दिर चला करो, शाम को वहाँ शास्त्र बँचता है, उसमें अच्छी-अच्छी कहानियाँ निकलती हैं। ___ अध्यापक - हाँ ! हाँ ! शास्त्रों में महापुरुषों की कथायें भी होती हैं। जिन शास्त्रों में महापुरुषों के चरित्रों द्वारा पुण्य-पाप के फल का वर्णन होता है और अंत में वीतरागता को हितकर बताया जाता है, उन्हें प्रथमानुयोग के शास्त्र कहते हैं। छात्र - तो क्या शास्त्र कई प्रकार के होते हैं ? अध्यापक - शास्त्र तो जिनवाणी को कहते हैं, उसमें तो वीतरागता का पोषण होता है। उसके कथन करने की विधियाँ चार हैं; जिन्हें अनुयोग कहते हैं - प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग और द्रव्यानुयोग। छात्र - हमें तो कहानियाँ वाला शास्त्र ही अच्छा लगता है, उसमें खूब आनन्द आता है। अध्यापक - भाई ! शास्त्र की अच्छाई तो वीतरागतारूप धर्म के वर्णन में है, कोरी कहानियों में नहीं। छात्र - तो फिर यह कथाएँ शास्त्रों में लिखी ही क्यों हैं ? । अध्यापक - तुम ही कह रहे थे कि हमारा मन कथाओं में खूब लगता है। बात यही है कि रागी जीवों का मन केवल वैराग्य-कथन में लगता नहीं। अत: जिसप्रकार बालक को पतासे के साथ दवा देते हैं, उसीप्रकार तुच्छ बुद्धि जीवों को कथाओं के माध्यम से धर्म (वीतरागता) में रुचि कराते हैं और अंत में वैराग्य का ही पोषण करते हैं। __छात्र - अच्छा ! यह बात है। यह पुराण और चरित्र-ग्रंथ प्रथमानुयोग में आते होंगे। करणानुयोग में किस बात का वर्णन होता है ? ___ अध्यापक - करणानुयोग में गुणस्थान, मार्गणास्थान आदि रूप तो जीव का वर्णन होता है और कर्मों तथा तीनों लोकों का भूगोल संबंधी वर्णन होता है। इसमें गणित की मुख्यता रहती है, क्योंकि गणना और नाप का वर्णन होता है न ! छात्र - यह तो कठिन पड़ता होगा ? अध्यापक - पड़ेगा ही, क्योंकि इसमें अति सूक्ष्म केवलज्ञानगम्य बात का वर्णन होता है। गोम्मटसार जीवकाण्ड, गोम्मटसार कर्मकाण्ड, लब्धिसार और त्रिलोक-सार ऐसे ही ग्रन्थ हैं। छात्र - चरणानुयोग सरल पड़ता होगा? अध्यापक - हाँ ! क्योंकि इसमें स्थूल बुद्धिगोचर कथन होता है। इसमें सुभाषित, नीति-शास्त्रों की पद्धति मुख्य है, क्योंकि इसमें गृहस्थ और मुनियों के आचरण नियमों का वर्णन होता है। इस अनुयोग में जैसे भी यह जीव पाप छोड़कर धर्म में लगे अर्थात् वीतरागता में वृद्धि करे वैसे ही अनेक युक्तियों से कथन किया जाता है। छात्र - तो रत्नकरण्ड श्रावकाचार इसी अनुयोग का शास्त्र होगा ? (१७)
SR No.008387
Book TitleVitrag Vigyana Pathmala 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages24
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size142 KB
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