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________________ अध्यापक रमेश अध्यापक रमेश अध्यापक सुरेश अध्यापक भगवान पार्श्वनाथ - रमेश ! तुम पार्श्वनाथ के बारे में क्या जानते हो ? - जी, पार्श्वनाथ एक रेल्वे स्टेशन का नाम है। - अपने स्थान पर खड़े हो जाओ। तुम्हें उत्तर देने का तरीका भी नहीं मालूम ? खड़े होकर उत्तर देना चाहिए। सभ्यता सीखो। हम पूछते हैं भगवान पार्श्वनाथ की बात, आप बताते हैं स्टेशन का नाम । - जी, मैं कलकत्ता गया था। रास्तें में पार्श्वनाथ नाम का स्टेशन आया था, अतः कह दिया। कुछ गलती हो गई हो तो क्षमा करें। पार्श्वनाथ स्टेशन का भी नाम है, पर जानते हो कि उस स्टेशन का नाम पार्श्वनाथ क्यों पड़ा ? उसके पास एक पर्वत है, जिसका नाम सम्मेदशिखर है । वहाँ से तेईसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ ने निर्वाण प्राप्त किया था। यही कारण है कि उस स्टेशन का नाम भी पार्श्वनाथ रखा गया, यहाँ तक कि उस पर्वत को भी पारसनाथ हिल कहा जाता है। यह जैनियों का बहुत बड़ा तीर्थक्षेत्र है, यहाँ लाखों आदमी प्रतिवर्ष यात्रा करने आते हैं। यह स्थान बिहार प्रान्त में हजारीबाग जिले में ईसरी के पास है। पार्श्वनाथ के अलावा और भी कई तीर्थंकरों ने यहाँ से परमपद (मोक्ष) प्राप्त किया है। - और पार्श्वनाथ का जन्म स्थान कौन-सा है ? - काशी, जिसे आजकल वाराणसी (बनारसी) कहते हैं। आज से करीब तीन हजार वर्ष पहले इक्ष्वाकुवंश के काश्यप गोत्रीय वाराणसी नरेश अश्वसेन के यहाँ उनकी विदुषी पत्नी वामादेवी के उदर से, पौष कृष्ण ( ४० ) सुरेश अध्यापक जिनेश अध्यापक जिनेश एकादशी के दिन पार्श्वकुमार का जन्म हुआ था । उनके जन्म कल्याणक का उत्सव उनके माता-पिता और जनपदवासियों ने तो मनाया ही था, पर साथ में देवों और इन्द्रों ने भी बड़े उत्साह से मनाया था। पार्श्वकुमार जन्म से ही प्रतिभाशाली और चमत्कृत बुद्धिनिधान अवधिज्ञान के धारक थे। वे अनेक सुलक्षणों के धनी, अतुल्य बल से युक्त, आकर्षक व्यक्तित्व वाले बालक थे। - वे तो राजकुमार थे न ? उन्हें तो सबप्रकार की लौकिक सुविधायें प्राप्त रही होंगी। इसमें क्या सन्देह ! वे राजकुमार होने के साथ ही अतिशय पुण्य के धनी थे, देवादिक भी उनकी सेवा में उपस्थित रहते थे । यही कारण है कि उन्हें किसी प्रकार की सामग्री की कमी न थी, पर राज्य-वैभव एवं पुण्य-सामग्री के लिए उनके हृदय में कोई स्थान न था, भोगों की लालसा उन्हें किंचित् भी न थी। वैभव की छाया में पलने पर भी जल में रहनेवाले कमल के समान उससे अलिप्त ही थे। - युवा होने पर उनके माता-पिता ने बहुत ही प्रयत्न किये, पर उन्हें विवाह करने को राजी न कर सके। वे बाल ब्रह्मचारी ही रहे। - • ऐसा क्यों ? - वे आत्मज्ञानी तो जन्म से थे ही, उनका मन सदा जगत से उदास रहता था। एक दिन एक ऐसी घटना घटी कि जिसने उनके हृदय को झकझोर दिया और गम्बर साधु होकर आत्मसाधना करने लगे । - वह कौन-सी घटना थी ? ( ४१ )
SR No.008387
Book TitleVitrag Vigyana Pathmala 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages24
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size142 KB
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