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________________ पाठ९ भगवान पार्श्वनाथ कहते हैं कि श्रीपाल और उनके सात सौ साथियों का कोढ़ इसी से मिटा था। उनकी पत्नी मैना सुन्दरी ने सिद्धचक्र का पाठ करके गंधोदक उन पर छिड़का और कोढ़ गायब । जिनेश - सिद्धचक्र की महिमा मात्र कुष्ठ-निरोध तक सीमित करना उसकी महानता में कमी करना है। कुष्ठ तो शरीर का रोग है, आत्मा का कोढ़ तो राग-द्वेष-मोह है। जो आत्मा सिद्धों के सही स्वरूप को जानकर उन जैसी अपनी आत्मा को पहिचानकर उसमें ही लीन हो जावे तो जन्म-मरण और राग-द्वेष-मोह जैसे महारोग भी समाप्त हो जाते हैं। सिद्धों की आराधना का सच्चा फल तो वीतराग भाव की वृद्धि होना है, क्योंकि वे स्वयं वीतराग हैं। सिद्धों का सच्चा भक्त उनसे लौकिक लाभ की चाह नहीं रखता। फिर भी उसके अतिशय पुण्य का बंध तो होता ही है, अत: उसे लौकिक अनुकूलतायें भी प्राप्त होती हैं, पर उसकी दृष्टि में उनका कोई महत्त्व नहीं। दिनेश - मैं तो समझता था कि त्यौहार खाने-पीने और मौज उड़ाने के ही होते हैं, पर आज समझ में आया कि धार्मिक पर्व तो वीतरागता की वृद्धि करनेवाले संयम और साधना के पर्व हैं। अच्छा, मैं भी तुम्हारे समान इन दिनों में संयम से रहूँगा और आत्म-तत्त्व को समझने का प्रयास करूंगा। कविवर पं. भूधरदासजी (वि. संवत् १७५०-१८०६) वैराग्य रस से ओतप्रोत आध्यात्मिक पदों के प्रणेता प्राचीन जैन कवियों में भूधरदासजी का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इनके पद, छन्द और कवित्त समस्त धार्मिक समाज में बड़े आदर से गाये जाते हैं। आप आगरा के रहनेवाले थे। आपका जन्म खण्डेलवाल जैन जाति में हुआ था, जैसा कि जैन-शतक के अन्तिम छंद में आप स्वयं लिखते हैं आगरे में बाल बुद्धि, भूधर खण्डेलवाल, बालक के ख्याल सो कवित्त कर जाने हैं। ये हिन्दी और संस्कृत के अच्छे विद्वान थे। अब तक इनकी तीन रचनाएँ प्राप्त हो चुकी हैं - जिनके नाम जैन-शतक, पार्श्वपुराण एवं पद-संग्रह है। जैन-शतक में करीब सौ विविध छन्द संगृहीत हैं, जो कि बड़े सरल एवं वैराग्योत्पादक हैं। पार्श्वपुराण को तो हिन्दी के महाकाव्यों की कोटि में रखा जा सकता है। इसमें २३वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ के जीवन का वर्णन है। यह उत्कष्ट कोटि के काव्योपादानों से युक्त तो है ही, साथ ही इसमें अनेक सैद्धान्तिक विषयों का भी रोचक वर्णन है। आपके आध्यात्मिक पद तो अपनी लोकप्रियता, सरलता और कोमलकान्त पदावली के कारण जनमानस को आज भी उद्वेलित करते रहते हैं। प्रस्तुत पाठ आपके द्वारा लिखित पार्श्वपुराण के आधार पर लिखा गया है। (३९) प्रश्न १. धार्मिक पर्व किसप्रकार मनाये जाते हैं ? २. अष्टाह्निका के संबंध में अपने विचार व्यक्त कीजिए। ३. नन्दीश्वर द्वीप कहाँ है ? उसमें क्या है? ४. यह पर्व कब-कब मनाया जाता है ? ५. सिद्धचक्र किसे कहते हैं ? सिद्धों की आराधना का फल क्या है? ६. क्या तुमने कभी सिद्धचक्र का पाठ होते देखा है ? उसमें क्या होता है ? समझाइये। (३८)
SR No.008387
Book TitleVitrag Vigyana Pathmala 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages24
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size142 KB
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