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________________ ३६ पंच भाव सर्वाधिक प्रसिद्ध रचनाएँ हैं। आचार्य समन्तभद्र ने इसी ग्रंथराज पर गंधहस्ति महाभाष्य नामक महाग्रंथ लिखा था, जो कि अप्राप्त है, पर तत्संबंधी उल्लेख प्राप्त हैं। श्रुतसागर सूरि की भी एक टीका संस्कृत भाषा में प्राप्त है। हिंदी भाषा के प्राचीन विद्वानों में पण्डित सदासुखदासजी कासलीवाल की अर्थप्रकाशिका टीका प्रसिद्ध है। आधुनिक विद्वानों में पण्डित फूलचन्दजी सिद्धान्ताचार्य, पण्डित कैलाशचन्दजी सिद्धान्ताचार्य, पण्डित पन्नालालजी साहित्याचार्य आदि अनेक विद्वानों द्वारा लिखी गई टीकाएँ उपलब्ध हैं। श्री रामजीभाई माणेकचन्द दोशी, सोनगढ़ द्वारा लिखित ८१० पृष्ठों की एक विशाल टीका भी है। यह ग्रन्थराज जैन समाज द्वारा संचालित सभी परीक्षा बोर्डों के पाठ्यक्रमों में निर्धारित है और सारे भारतवर्ष के जैन विद्यालयों में पढ़ाया जाता है। प्रस्तुत पाठ तत्त्वार्थसूत्र के द्वितीय अध्याय के आधार पर लिखा गया है। (19) तत्त्वज्ञान पाठमाला, भाग-१ ३७ पंच भाव प्रवचनकार यह 'तत्त्वार्थसूत्र' अपरनाम 'मोक्षशास्त्र' नामक महाशास्त्र है। इसका दूसरा अध्याय चलता है। यहाँ जीव के असाधारण भावों का प्रकरण चल रहा है। आत्मा का हित चाहनेवालों को आत्म-भावों की पहिचान ठीक तरह से करना चाहिये, क्योंकि आत्मा को पहिचाने बिना अनात्मा को भी नहीं पहिचाना जा सकता है और जो आत्मा अनात्मा दोनों को नहीं जानता, उसका हित कैसे संभव है ? - जीव के असाधारण भाव कितने व कौन-कौन हैं ? इस प्रश्न का समाधान करते हुए आचार्य उमास्वामी लिखते हैं'औपशमिकक्षायिका भावौ मिश्रश्च जीवस्य स्वतत्त्वमौदयिकपारिणामिकौ च । " औपशमिक, क्षायिक, मिश्र ( क्षायोपशमिक), औदयिक और पारिणामिक • ये जीव के पाँच असाधारण भाव व निजतत्त्व हैं। जीव के सिवाय किसी अन्य द्रव्य में नहीं पाये जाते हैं। इन भावों का विशेष विश्लेषण आचार्य अमृतचंद्र ने 'पंचास्तिकाय संग्रह ' की ५६ वीं गाथा की टीका में इसप्रकार किया है - "कर्मों का फलदानसामर्थ्यरूप से उद्भव सो 'उदय' है, अनुद्भव सो 'उपशम' है, उद्भव तथा अनुद्भव सो 'क्षयोपशम' है, अत्यन्त विश्लेष (वियोग ) सो 'क्षय' है । द्रव्य का आत्मलाभ (अस्तित्व) जिसका हेतु है वह 'परिणाम' है । वहाँ उदय से युक्त वह 'औदयिक' है, उपशम से युक्त वह 'औपशमिक' है, क्षयोपशम से युक्त वह 'क्षायोपशमिक' है, क्षय से 'क्षायिक' है, परिणाम से युक्त वह 'पारिणामिक है।" युक्त वह कर्मोपाधि की चार प्रकार की दशा जिनका निमित्त है ऐसे चार (उदय, उपशम, क्षयोपशम और क्षय) भाव हैं। जिसमें कर्मोपाधिरूप निमित्त बिलकुल नहीं है, मात्र द्रव्यस्वभाव ही जिसका कारण है ऐसा एक पारिणामिक भाव है। जिज्ञासु - अभी पूरी तरह से समझ में नहीं आया, कृपया विस्तार से समझाइये न ? १. तत्त्वार्थसूत्र, अध्याय २, सूत्र : १ DjShrutesh5.6.04|shruteshbooks hookhinditvayan Patmala Part-1
SR No.008382
Book TitleTattvagyan Pathmala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2005
Total Pages32
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size166 KB
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