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________________ ५८६ षट्स्थानपतितवृद्धिहानिपरिणतस्वरूपप्रतिष्ठत्वकारणविशिष्टगुणात्मिका अगुरुलघुत्वशक्ति: । क्रमाक्रमवृत्तवृत्तित्वलक्षणा उत्पादव्ययध्रुवत्वशक्तिः । यह भगवान आत्मा स्वयं में परिपूर्ण तत्त्व है, इसमें न तो कोई कमी है और न कुछ अधिकता ही है। यदि कमी होती तो ग्रहण करना अनिवार्य हो जाता और अधिकता होती तो उसका त्याग करना भी अनिवार्य हो जाता । समयसार I ग्रहण और त्याग क्रमशः कमी और अधिकता के सूचक हैं। यदि हमें कुछ ग्रहण करने का भाव है तो इसका अर्थ यह हुआ कि हम अपने स्वभाव में कुछ न्यूनता का अनुभव करते हैं । इसीप्रकार त्यागने के भाव के साथ भी यह प्रतीति कार्य करती है कि हममें कुछ अधिकता है, जिसे छोड़ना आवश्यक है। त्रिकाली ध्रुव भगवान आत्मा में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसे त्यागा जाये और ऐसी कोई कमी भी नहीं है कि बाहर से उसकी पूर्ति करनी पड़े। भगवान आत्मा के इस परिपूर्ण स्वभाव नाम ही त्यागोपादानशून्यत्व शक्ति है । त्यागोपादानशून्यत्वशक्ति का कथन निश्चयनयाश्रित होने से परमार्थ है, सत्यार्थ है और ग्रहणत्याग की चर्चा व्यवहारनयाश्रित होने से असत्यार्थ है, अभूतार्थ है । त्यागोपादानशून्यत्वशक्ति समझने के उपरान्त अब अगुरुलघुत्वशक्ति की चर्चा करते हैं - १७. अगुरुलघुत्वशक्ति अगुरुलघुत्वशक्ति का स्वरूप आत्मख्याति में इसप्रकार स्पष्ट किया है - अगुरुलघुत्वशक्ति षट्स्थानपतित वृद्धि हानि रूप से परिणमित स्वरूप प्रतिष्ठत्व का कारणरूप विशेष गुणात्मक है 1 न केवल आत्मा में, अपितु प्रत्येक पदार्थ की प्रत्येक पर्याय में षट्गुणी वृद्धि और षट्गुणी हा निरन्तर हुआ करती है। गजब की बात तो यह है कि यह वृद्धि और हानि एक ही वस्तु में एकसाथ ही होती है। इसप्रकार अगुरुलघुत्वशक्ति की चर्चा के उपरान्त अब उत्पाद-व्यय-ध्रुवत्वशक्ति की चर्चा करते हैं - - ध्रुवत्वशक्ति १८. उत्पाद - व्यय - - इस अठारहवीं उत्पाद-व्यय-' - ध्रुवत्वशक्ति की चर्चा आत्मख्याति में इसप्रकार की गई है क्रमवृत्ति और अक्रमवृत्तिरूप वर्तना है लक्षण जिसका, वह उत्पाद-व्यय-ध्रुवत्वशक्ति है । प्रत्येक द्रव्य गुण और पर्यायवाला होता है तथा सत् द्रव्य का लक्षण है; जो उत्पाद, व्यय और ध्रुवत्व से युक्त होता है । यहाँ यह बताया जा रहा है कि अनन्त शक्तियों से सम्पन्न भगवान आत्मा में एक ऐसी भी शक्ति है कि जिसके कारण यह भगवान आत्मा स्वयं ही उत्पाद, व्यय और ध्रुवत्व से सहित है। उक्त शक्ति का नाम ही उत्पाद - व्यय - ध्रुवत्व शक्ति है ।
SR No.008377
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size1 MB
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