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________________ ५३० समयसार गंध ज्ञान नहीं है क्योंकि गंध कुछ जाने नहीं। बस इसलिए ही गंध अन्य रु ज्ञान अन्य श्रमण कहें ।।३९४।। रस नहीं है ज्ञान क्योंकि रस भी कुछ जाने नहीं। बस इसलिए ही रस अन्य रु ज्ञान अन्य श्रमण कहें।।३९५।। स्पर्श ज्ञान नहीं है क्योंकि स्पर्श कुछ जाने नहीं। बस इसलिए ही स्पर्श अन्य रु ज्ञान अन्य श्रमण कहें।।३९६।। कर्म ज्ञान नहीं है क्योंकि कर्म कुछ जाने नहीं। बस इसलिए ही कर्म अन्य रुज्ञान अन्य श्रमण कहें।।३९७।। धर्म ज्ञान नहीं है क्योंकि धर्म कुछ जाने नहीं। बस इसलिए ही धर्म अन्य रु ज्ञान अन्य श्रमण कहें।।३९८।। अधर्म ज्ञान नहीं है क्योंकि अधर्म कुछ जाने नहीं। बस इसलिए ही अधर्म अन्यरुज्ञान अन्य श्रमण कहें।।३९९।। काल ज्ञान नहीं है क्योंकि काल कछ जाने नहीं। बस इसलिए ही काल अन्य रु ज्ञान अन्य श्रमण कहें।।४००।। आयासं पि ण णाणं जम्हायासं ण याणदे किंचि। तम्हायासं अण्णं अण्णं णाणं जिणा बेंति ।।४०१।। णज्झ्वसाणं णाणं अज्झवसाणं अचेदणं जम्हा। तम्हा अण्णं णाणं अज्झवसाणं तहा अण्णं ।।४०२।। जम्हा जाणदि णिच्चं तम्हा जीवो दु जाणगो णाणी। णाणं च जाणयादो अव्वदिरित्तं मुणेयव्वं ।।४०३।। णाणं सम्मादिढेि दु संजमं सुत्तमंगपुव्वगयं । धम्माधम्मं च तहा पव्वज्जं अब्भुवंति बुहा ।।४०४।। शास्त्रं ज्ञानं न भवति यस्माच्छास्त्रं न जानाति किंचित् । तस्मादन्यज्ज्ञानमन्यच्छास्त्रं जिना ब्रुवन्ति ।।३९०।। शब्दोज्ञानं न भवति यस्माच्छब्दोन जानाति किंचित् । तस्मादन्यज्ज्ञानमन्यं शब्दं जिना ब्रुवन्ति ।।३९१।। रूपं ज्ञानं न भवति यस्माद्रूपं न जानाति किंचित् । तस्मादन्यज्ज्ञानमन्यद्रूपं जिना ब्रुवन्ति ।।३९२।। वर्णो ज्ञानं न भवति यस्माद्वर्णो न जानाति किंचित् । तस्मादन्यज्ज्ञानमन्यं वर्णं जिना ब्रवन्ति ।।३९३।।
SR No.008377
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size1 MB
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