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________________ ५२२ का ही संचेतन करता हूँ । १०१. मैं सुरभिगंध नामकर्म के फल को नहीं भोगता हूँ; क्योंकि मैं चैतन्यस्वरूप आत्मा का ही संचेतन करता हूँ । समयसार १०२. मैं असुरभिगंध नामकर्म के फल को नहीं भोगता हूँ; क्योंकि मैं चैतन्यस्वरूप आत्मा का ही संचेतन करता हूँ । १०३. मैं शुक्लवर्ण नामकर्म के फल को नहीं भोगता हूँ; क्योंकि मैं चैतन्यस्वरूप आत्मा का ही संचेतन करता हूँ । १०४. मैं रक्तवर्ण नामकर्म के फल को नहीं भोगता हूँ; क्योंकि मैं चैतन्यस्वरूप आत्मा का ही संचेतन करता हूँ । १०५. मैं पीतवर्ण नामकर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, क्योंकि मैं चैतन्यस्वरूप आत्मा का ही संचेतन करता हूँ । १०६. मैं हरितवर्ण नामकर्म के फल को नहीं भोगता हूँ; क्योंकि मैं चैतन्यस्वरूप आत्मा का ही संचेतन करता हूँ। १०७. मैं कृष्णवर्ण नामकर्म के फल को नहीं भोगता हूँ; क्योंकि मैं चैतन्यस्वरूप आत्मा का ही संचेतन करता हूँ । नाहं नरकगत्यानुपूर्वीनामकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये । १०८ । नाहं तिर्यग्गत्यानुपूर्वीनामकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये । १०९ । नाहं मनुष्यगत्यानुपूर्वीनामकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये । ११० । नाहं देवगत्यानुपूर्वीनामकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये । १११ । नाहं निर्माणनामकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये । ११२ । नाहमगुरुलघुनामकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये । ११३ । नाहमपुघातनामकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये । ११४ । नाहं परघातनामकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ।११५। नाहमातपनामकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये । ११६ । नाहमुद्योतनामकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये । ११७ । नाहमुच्छ्वासनामकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये । ११८ । १०८. मैं नरकगत्यानुपूर्वी नामकर्म के फल को नहीं भोगता हूँ; क्योंकि मैं चैतन्यस्वरूप आत्मा का ही संचेतन करता हूँ । १०९. मैं तिर्यंचगत्यानुपूर्वी नामकर्म के फल को नहीं भोगता हूँ; क्योंकि मैं चैतन्यस्वरूप आत्मा का ही संचेतन करता हूँ । ११०. मैं मनुष्यगत्यानुपूर्वी नामकर्म के फल को नहीं भोगता हूँ; क्योंकि मैं चैतन्यस्वरूप आत्मा का ही संचेतन करता हूँ । १११. मैं देवगत्यानुपूर्वी नामकर्म के फल को नहीं भोगता हूँ; क्योंकि मैं चैतन्यस्वरूप
SR No.008377
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size1 MB
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