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________________ सर्वविशुद्धज्ञानाधिकार ५१३ कर्मफल त्याग की भावना के १४८ प्रकार इसप्रकार हैं - १. मैं मतिज्ञानावरणी कर्म के फल को नहीं भोगता हूँ; क्योंकि मैं चैतन्यस्वरूप आत्मा का ही संचेतन करता हूँ। ___२. मैं श्रुतज्ञानावरणी कर्म के फल को नहीं भोगता हूँ; क्योंकि मैं चैतन्यस्वरूप आत्मा का ही संचेतन करता हूँ। ____३. मैं अवधिज्ञानावरणी कर्म के फल को नहीं भोगता हूँ; क्योंकि मैं चैतन्यस्वरूप आत्मा का ही संचेतन करता हूँ। ४. मैं मन:पर्ययज्ञानावरणी कर्म के फल को नहीं भोगता हूँ; क्योंकि मैं चैतन्यस्वरूप आत्मा का ही संचेतन करता हूँ। ५. मैं केवलज्ञानावरणी कर्म के फल को नहीं भोगता हूँ, क्योंकि मैं चैतन्यस्वरूप आत्मा का ही संचेतन करता हूँ। ६. मैं चक्षुर्दर्शनावरणी कर्म के फल को नहीं भोगता हूँ; क्योंकि मैं चैतन्यस्वरूप आत्मा का ही संचेतन करता हूँ। ७. मैं अचक्षुर्दर्शनावरणी कर्म के फल को नहीं भोगता हूँ; क्योंकि मैं चैतन्यस्वरूप आत्मा का ही संचेतन करता हूँ। चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये।८। नाहं केवलदर्शनावरणीयकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये।९। नाहं निद्रादर्शनावरणीयकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ।१०। नाहं निद्रानिद्रादर्शनावरणीयकर्मफलं भुंजे चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ।११। नाहं प्रचलादर्शना-वरणीयकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ।१२। नाहं प्रचलाप्रचलादर्शनावरणीयकर्म-फलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ।१३। नाहं स्त्यानगृद्धिदर्शनावरणीयकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ।१४। नाहंसातावेदनीयकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ।१५। नाहमसातावेदनीयकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ।१६। नाहं सम्यक्त्वमोहनीयकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ।१७। नाहं मिथ्यात्वमोहनीयकर्मफलं भुंजे, चैतन्यात्मानमात्मानमेव संचेतये ।१८। नाहं सम्यक्त्वमिथ्यात्वमोहनीयकर्म ८. मैं अवधिदर्शनावरणी कर्म के फल को नहीं भोगता हूँ; क्योंकि मैं चैतन्यस्वरूप आत्मा का ही संचेतन करता हूँ। ९. मैं केवलदर्शनावरणी कर्म के फल को नहीं भोगता हूँ; क्योंकि मैं चैतन्यस्वरूप आत्मा का ही संचेतन करता हूँ। १०. मैं निद्रादर्शनावरणी कर्म के फल को नहीं भोगता हूँ; क्योंकि मैं चैतन्यस्वरूप आत्मा का ही संचेतन करता हूँ।
SR No.008377
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size1 MB
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