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________________ कर्ताकर्माधिकार जो २०३ शुभ या अशुभ, प्रवृत्तिरूप या निवृत्तिरूप चेष्टा का उत्साह है, उसे योग का उदय जानो । इन उदयों के हेतुभूत होने पर जो कार्माणवर्गणागत पुद्गलद्रव्य ज्ञानावरणादि भावरूप से आठ प्रकार परिणमता है, वह कार्माणवर्गणागत पुद्गलद्रव्य जब जीव से बँधता है, तब जीव अपने अज्ञानमय परिणाम भावों का हेतु होता है। इस बात का उल्लेख इन गाथाओं की आत्मख्याति टीका में भी है ही, जिसका भाव इसप्रकार है अतत्त्वोपलब्धिरूपेण ज्ञाने स्वदमानो अज्ञानोदयः । मिथ्यात्वासंयमकषाययोगोदयाः कर्महेतवस्तन्मयाश्चत्वारो भावा: । तत्त्वाश्रद्धानरूपेण ज्ञाने स्वदमानो मिथ्यात्वोदय:, अविरमणरूपेण ज्ञाने स्वदमानोऽसंयमोदय:, कलुषोपयोगरूपेण ज्ञाने स्वदमानः कषायोदयः, शुभाशुभप्रवृत्ति - निवृत्तिव्यापाररूपेण ज्ञाने स्वदमानो योगोदयः । अथैतेषु पौद्गलिकेषु मिथ्यात्वाद्युदयेषु हेतुभूतेषु यत्पुद्गलद्रव्यं कर्मवर्गणागतं ज्ञानावरणादिभावैरष्टधा स्वयमेव परिणमते तत्खलु कर्मवर्गणागतं जीवनिबद्धं यदा स्यात्तदा जीवः स्वयमेवाज्ञानात्परात्मनोरेकेत्वाध्यासेनाज्ञानमयानां तत्त्वाश्रद्धानादीनां स्वस्य परिणामभावानां हेतुर्भवति । । १३२ - १३६ ।। जीवात्पृथग्भूत एव पुद्गलद्रव्यस्य परिणामः जीवसदु कम्मेण सह परिणामा हु होंति रागादी । एवं जीवो कम्मं च दो वि रागादिमावण्णा ।। १३७ ।। एकस्स दु परिणामो जायदि जीवस्स रागमादीहिं । ता कम्मोदयहेदूहिं विणा जीवस्स परिणामो ।। १३८ ।। जड़ जीवेण सह च्चिय पोग्गलदव्वस्स कम्मपरिणामो । एवं पोग्गलजीवा हु दो वि कम्मत्तमावण्णा । । १३९।। एकस्स दु परिणामो पोग्गलदव्वस्स कम्मभावेण । ता जीवभावदूहिं विणा कम्मस्स परिणामो । । १४० ।। “अतत्त्व की उपलब्धिरूप से अर्थात् तत्त्व के अज्ञान रूप से ज्ञान में स्वादरूप होता हुआ अज्ञान का उदय है। नवीन कर्मों के हेतुरूप यह अज्ञानमयभाव मिथ्यात्व, असंयम, कषाय और योग के उदय के रूप में चार प्रकार के हैं । तत्त्व के अश्रद्धानरूप से ज्ञान में स्वादरूप होता हुआ मिथ्यात्व का उदय है, अविरमणरूप से ज्ञान में स्वादरूप होता हुआ असंयम का उदय है, कलुष उपयोगरूप से ज्ञान में स्वादरूप होता हुआ कषाय का उदय है, शुभाशुभ प्रवृत्ति या निवृत्ति के व्यापाररूप से ज्ञान में स्वादरूप होता हुआ योग का उदय है। इन पौद्गलिक मिथ्यात्वादि के उदय के हेतुभूत होने पर जो पुद्गलद्रव्य ज्ञानावरणादि भाव से आठ प्रकार स्वयमेव परिणमता है, वह कार्माणवर्गणागत पुद्गलद्रव्य जब जीव में निबद्ध
SR No.008377
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size1 MB
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