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________________ १७२ समयसार स्वादिष्ट भोजन को खानेवाले हाथी आदि पशुओं की भाँति राग करता है, राग और आत्मा का मिला हुआ स्वाद लेता है; वह दही और इक्षुरस (गन्ने का रस, गुड़, चीनी) के खट्टे-मीठे स्वाद की अतिलोलुपता से शिखरणी (श्रीखण्ड) को पीकर भी 'मैं तो गाय का दूध पी रहा हूँ' - ऐसा माननेवाले पुरुष के समान अज्ञानी है। (शार्दूलविक्रीडित ) अज्ञानान्मृगतृष्णिकां जलधिया धावंति पातुं मृगा अज्ञानात्तमसि द्रवंति भुजगाध्यासेन रज्जौ जनाः। अज्ञानाच्च विकल्पचक्रकरणाद्वातोत्तरंगाब्धिवत् शुद्धज्ञानमया अपि स्वयममी कीभवंत्याकुलाः ।।५८।। उक्त कलश में तो यह कहा गया है कि यह आत्मा अज्ञान के कारण पर में तथा रागादि में एकत्व मानता है और अब आगामी कलश में यह कह रहे हैं कि शुद्धज्ञानमय होकर भी यह आत्मा पर का और रागादिभावों का कर्ता बनकर आकुलित हो रहा है। कलश का पद्यानुवाद इसप्रकार है - ( हरिगीतिका ) अज्ञान से ही भागते मृग रेत को जल मानकर। अज्ञान से ही डरें तम में रस्सी विषधर मानकर ।। ज्ञानमय है जीव पर अज्ञान के कारण अहो। वातोद्वेलित उदधिवत् कर्ता बने आकुलित हो ।।५८।। जिसप्रकार अज्ञान के कारण मृगमरीचिका में जल की बुद्धि होने से मृग उसे पीने को दौड़ते हैं और अज्ञान से ही अंधकार में पड़ी हई रस्सी में सर्प का अध्यास होने से लोग भय से भागते हैं; उसीप्रकार शुद्धज्ञानमय होने पर भी ये जीव अज्ञान के कारण पवन से तरंगित समुद्र की भाँति विकल्पों के समूह को करने से आकुलित होते हुए अपने आप ही पर के कर्ता होते हैं। यहाँ यह बताया गया है कि जिसप्रकार मृगमरीचिका में पड़े हुए मृग भयंकर गर्मी में आकुलित होकर भागते हैं और अंधकार में पड़ी रस्सी को सर्प समझकर लोग आकुलित होकर भागते हैं; उसीप्रकार ज्ञानस्वभावी यह भगवान आत्मा अज्ञान के कारण पर की संभाल में दौड़-धूप करता है, धनादि पदार्थों के जुटाने में जीवन के महत्त्वपूर्ण क्षण बर्बाद करता है, देहादि की अनुकूलता के लिए भक्ष्याभक्ष्य के विचाररहित होकर असद् आचरण करता है और पर-पदार्थों और शुभाशुभ भावों का कर्ता-धर्ता बनकर आकुलित होता है। जिसप्रकार समुद्र स्वभाव से तो शान्त ही है, तथापि वायु के वेग से तरंगित हो जाता है,
SR No.008377
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size1 MB
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