SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ । इसप्रकार वे सुविधि राजा दीर्घकाल तक श्रावकधर्म के द्वारा आत्मा की आराधना करते रहे । जीवन श || के अन्तिम समय में उन्होंने सर्व परिग्रह का त्याग करके दिगम्बर जिन दीक्षा धारण कर मुनिव्रत लेकर उत्कृष्ट ला | मोक्षमार्ग की आराधना करके समाधिमरण पूर्वक देहत्याग किया और अच्युत स्वर्ग में ऋद्धि के धारक | अच्युतेन्द्र हुए। श्रीमति के जीव केशव ने भी समस्त बाह्य और अभ्यन्तर परिग्रह का त्याग कर निर्ग्रन्थ दीक्षा | धारण की और समाधिमरण कर अच्युत स्वर्ग में प्रतीन्द्र पद प्राप्त किया। सिंह, वानर आदि के जीव भी उसी अच्युत स्वर्ग में देव हुए। सच ही है - पूर्वभव में संस्कारों से जीव एक ही स्थान में एकत्रित हो जाते हैं। इसप्रकार मुनि होकर एवं समाधिमरण पूर्वक मरण को प्राप्त तीर्थंकर ऋषभदेव का जीव तीसरे पूर्व भव में अच्युत नामक सोलहवें स्वर्ग में २० सागर आयु प्रमाण अच्युतेन्द्र हुआ। उसके उपभोग में आनेवाले देव विमानों की संख्या १५९ थी। उसके परिवार में अन्य दस हजार सामानिक देव थे। यद्यपि उन सामानिक देवों का वैभव भी इन्द्र के ही समान होता है; परन्तु इन्द्र के समान उनकी आज्ञा नहीं चलती। उनके ४० हजार अंगरक्षक देव थे। स्वर्ग में यद्यपि किसी प्रकार का भय नहीं है, परन्तु वे अंगरक्षक इन्द्र की विभूति के सूचक हैं। इन्द्र की अन्त: परिषद, मध्यम परिषद, बाह्य परिषद नाम की तीन प्रकार की परिषदें होती हैं। चारों दिशाओं में चार लोकपाल होते हैं। प्रत्येक लोकपाल की ३२ देवियाँ होती हैं। ___अच्युतेन्द्र के वैभव में ६३ वल्लनिका देवियाँ थी और चार महादेवियाँ थीं, एक-एक महादेवी के २५०२५० देवियों का परिवार था । इसप्रकार उस अच्युतेन्द्र की कुल दो हजार इकहत्तर देवियाँ थीं। उसका चित्त उन देवियों के स्मरण मात्र से सन्तुष्ट हो जाता था। उसकी प्रत्येक देवी में ऐसी विक्रियाशक्ति थी। वह सुन्दरतम दस लाख चौबीस हजार रूप बना सकती थीं। उस इन्द्र के हाथी, घोड़ा, रथ आदि सात प्रकार की सेना थी। जो देवों की ही विक्रिया द्वारा निर्मित थी। अच्युतेन्द्र २२ हजार वर्ष में एक बार अमृत का आहार करते थे। ग्यारह माह में एक श्वांस लेते थे। उनका अति सुन्दर शरीर मात्र तीन हाथ का था। आचार्य कहते हैं कि भगवान ऋषभदेव के जीव ने धर्म के प्रताप से ऐसी अच्युतेन्द्र की पर्याय में ऐसी
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy