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________________ GREEFFE . कषाय मंद हो जाने से अति आवश्यक सीमित वस्तुएँ रखकर बाकी सभी क्षेत्र, वास्तु, सुवर्ण, हिरण्य, | धन-धान्य, दासी-दास आदि चेतन और अचेतन दस प्रकार के परिग्रह का एकदेश त्याग करने का शुभभाव परिग्रह त्याग प्रतिमा है। इस प्रतिमा का धारी श्रावक, सुखी, संतोषी और वैरागी होता है। १०. अनुमति त्याग प्रतिमा - पर को पापारंभ का, जो न देय उपदेश । सो दसभी प्रतिमा सहित, श्रावक विगत कलेश। अपने कुटुम्बी जनों को एवं हितैषियों को भी व्यापार एवं शादी-विवाह आदि के संबंध में अनुमति देने | का भाव न आकर अपने उपयोग को स्वभावसन्मुख रखना निश्चय अनुमति त्याग प्रतिमा है तथा उपर्युक्त विषयों में अपनी अनुमति देने का त्याग करना व्यवहार अनुमति त्याग प्रतिमा है। ११. उद्दिष्ट त्याग प्रतिमा - जो स्वतंत्र विहरै तज डेरा, मठ मण्डप में करै बसेरा। || अनुदिष्ट आहरी प्रासुकपंथ विहारी, सो एकादश प्रतिमा धारी ।। इस प्रतिमा के धारी श्रावक गृहत्याग कर स्वतंत्र विहार करते हैं। जिनमन्दिरों, मठों या श्रावकों द्वारा निर्मित अस्थाई मण्डप आदि में निवास करते हैं। उद्दिष्ट आहार ग्रहण नहीं करते तथा प्रासुक पथ में अर्थात् जीव-जन्तु रहित राहों पर विहार करते हैं। आचरण की अपेक्षा इस प्रतिमा के दो विभाग हैं - एक क्षुल्लक का पद और दूसरा ऐलक का पद। ऐलक दशा में मात्र लंगोटी एवं पिच्छि-कमण्डलु के अतिरिक्त समस्त बाह्य परिग्रह का त्याग हो जाता है। क्षुल्लक की भावभूमि में ऐलक जैसी निर्मलता नहीं हो पाती; इसकारण यद्यपि उनके आहार-विहार की क्रिया में कोई अन्तर नहीं रहता है, किन्तु ये लंगोटी के अलावा ओढ़ने के लिए खण्डवस्त्र (छोटासा चादर) एवं केश लोंच के बजाय हजामत बनवाते हैं और पात्र में भोजन लेते हैं। सुविधि राजा श्रावकधर्म की उपर्युक्त ग्यारह प्रतिमाओं को निश्चय-व्यवहार की संधिपूर्वक समझ कर अपने परिणामों की भूमिका के अनुसार यथायोग्य पालन करते थे। उनके परिणामों की विशुद्धि दिनप्रतिदिन वृद्धिंगत होती रही। Fro REFERFE
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
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