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________________ । ऋषभदेव का नवाँ पूर्व भव राजा महाबल/षट्दर्शन समीक्षा इसी अनादि-निधन लोक में विजयार्द्ध पर्वत पर एक अलकापुरी नाम की नगरी थी। उस अलकापुरी का राजा अतिबल नाम का विद्याधर था। जो अपने नाम के अनुसार ही अति बलवान था, उसने बड़ेबड़े शत्रुओं को तो जीत ही लिया था। सदैव वयोवृद्ध और ज्ञानवृद्ध मनुष्यों की संगति में रहकर तत्त्वज्ञान भी प्राप्त कर लिया था, अपने अंतरंग शत्रु इन्द्रियों के विषयों पर भी विजय प्राप्त कर ली थी। वह बहुत वैभवशाली था, कुलीन था, दानी था, उदार था और संसार, शरीर और भोगों से विरक्त रहता था। यथानाम तथागुण सम्पन्न राजा अतिबल की मनोहरा नाम की प्राणप्रिया रानी थी। उनके महाबल नामक महाभाग्यवान होनहार पुत्र उत्पन्न हुआ। वह दिन प्रतिदिन शरीर और गुणों में वृद्धिंगत होने लगा। महाबल गुरुओं की शरण में रहकर सभी प्रकार की विद्याओं में निपुण हो गया। उसे पूर्व भव के प्रबल संस्कारों से पूर्वभव की समस्त विद्यायें स्मरण में आ गईं, जातिस्मरण ज्ञान प्रगट हो गया। महाराजा अतिबल ने अपना राज्य का पद अपने सर्वाधिक स्नेहपात्र पुत्र महाबल को सौंप दिया। यद्यपि महाराजा अतिबल के और भी बहुत पुत्र थे, पर उन्हें महाबल पर सर्वाधिक गौरव था। राजा अतिबल संसार से विरक्त तो थे ही, एक दिन राज्य से निर्धार होकर उन्होंने गृह त्याग कर दीक्षा लेने का निश्चय कर लिया। उन्हें तीव्रता से वैराग्य भाव जाग्रत हो गया। उन्होंने महाबल से कहा - "अब मैं आत्मशक्ति को बढ़ाकर इस संसार की बेल को उखाड़ फेंकूँगा। इसकी सूचना तुम्हें दे रहा हूँ। तुम राज्य शासन को चलाते हुए धर्मध्यान को मत भूलना; क्योंकि राज्य शासन और गृह में रचे-पचे रहना दुःख का ॥ ही मूल है। यह यौवन क्षणभंगुर है और ये पंचेन्द्रिय के भोग बारम्बार भोगने पर भी तृप्ति नहीं देते । तृप्ति || FFEB 2 Novv FEE
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
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