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________________ (२२३ श ला का पु रु ष (१९ आदीश्वर की दिव्यध्वनि सुनकर भरत के पुत्रों को वैराग्य एवं दीक्षा समवसरण की भेरी के शब्द सुनते ही भरत के पुत्र आनन्द से नाचने लगे । समवसरण के दिखते ही हाथ जोड़कर भक्ति से मस्तक झुकाया और 'दृष्टं जिनेन्द्र भवनं भवतापहारी' आदि स्तुति बोलते आगे हुए बढ़े। वे सोचते हैं - " इस रजतगिरी के ऊपर नवरत्नगिरी की स्थापना किसने की होगी ?" अन्दर आठ परकोटों से वेष्टित धूलिसाल नामक परकोटा दिख रहा था । वहाँ चारों दरवाजों के अन्दर अत्यन्त उन्नत गगनस्पर्शी सुवर्ण से निर्मित चार मानस्तम्भ थे । उनमें से एक मानस्तम्भ को उन कुमारों ने देखा । समवसरण पर्वत को स्पर्श न करता हुआ एक हस्त प्रमाण ऊपर होता है, पर्वत पृथ्वी से पाँच हजार धनुष ऊँचा होता है, जिस पर चढ़ने के लिए २० हजार सीढ़ियों की रचना होती है; परन्तु श्रोताओं को २० हजार दी सीढ़ियाँ चढ़ना नहीं पड़तीं। पहली सीढ़ी पर पैर रखते ही आधुनिक लिफ्ट की भांति अन्तर्मुहूर्त में ही एकदम श्व अन्तिम सीढ़ी पर पहुँच जाते हैं और वहाँ जिनेन्द्र का दर्शन करते हैं । यह वहाँ का एक अतिशय है। वैसे भी समवसरण की रचना इन्द्र द्वारा की जाती है, अत: कुछ भी असंभव नहीं है । फिर यह सुविधा तो विज्ञान ने मानवों को भी सुलभ करा दी है। दरवाजे पर द्वारपाल खड़े होते हैं । द्वारपालों की अनुमति पाकर सभी | कुमार अन्दर प्रविष्ट हुए । आगे जा हुए प्रत्येक परकोटे के दरवाजे में स्थित द्वारपालों की अनुमति लेते हुए समवसरण भूमि पर आगे बढ़ रहे थे । आठ परकोटों के मध्य स्थित सात वेदिकाओं को पार कर आठवें परकोटे में प्रविष्ट हुए । | इन राजकुमारों को भगवन्त की ओर आते हुए देवेन्द्र ने देखा। सभी भरत कुमारों का सांचे में ढले हुए के 544 आ र की दि व्य ध्व नि सर्ग १९
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
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