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________________ । | बन जाता है। मित्र कभी शत्रु बन जाता है। परिवर्तनशील इस संसार की स्थिति का क्या कहना? यहाँ पर | | सर्व व्यवस्था परिवर्तनशील है। इसलिए कौन किसका भरोसा करें।" यह सब विचार करते हुए वे राजकुमार जिस समय वन में जा रहे थे तो मार्ग में अनेक नगरों की प्रजा पूछ रही थी कि "ये राजकुमार कहाँ पधार रहे हैं?" उत्तर में वे राजकुमार कहते हैं कि "हम कैलाशपर्वत पर आदिप्रभु के दर्शन करने के लिए जा रहे हैं।" पुनः वे पूछते हैं कि “आप लोग पैदल चलते हुए क्यों जा रहे हैं? वाहनादि को ग्रहण कीजिए।" उत्तर में वे कहते हैं कि “भगवंत का दर्शन जबतक नहीं होता है, तबतक हमारा पैदल चलने का ही नियम है। इसलिए वाहनादिक की जरूरत नहीं है।" भरतेश्वर के सुकुमारों की चित्तवृत्ति को देखकर पाठकों को आश्चर्य हुए बिना नहीं रहेगा। इतने अल्पवय में भी इतने उच्चविचार, संसारभीरुता, वैराग्यसंपन्नविवेक पुण्यपुरुषों को ही हो सकता है। काम, क्रोधादिक विकारों से उत्पन्न होने के लिए जो साधकतम अवस्था है, उस समय आत्मानुभव करने योग्य शांत विचारों का उत्पन्न होना बहुत ही कठिन है। ऐसे सुपुत्रों को पाने वाले भरतेश्वर धन्य हैं। यह तो उनके अनेक भवोपार्जित सातिशय पुण्य का ही फल है कि उन्होंने ऐसे विवेकी ज्ञानगुण संपन्न सुपुत्रों को पाया है, जिन्होंने बाल्यकाल में ही संसार की असारता का अच्छी तरह ज्ञान कर लिया है। इसका एकमात्र कारण यह है कि भरतेश्वर सदा तद्रूप भावना करते थे। धन्य है उन राजकुमारों को, जिन्होंने पिता के पूर्व दीक्षा लेने का निश्चय कर लिया। FAREFREE FREE ००० १८
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
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