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________________ REFE १६७| आवश्यकता है" - ऐसा आग्रहपूर्वक कहकर सब स्त्रियों ने सासू माँ के चरणों में भक्तिपूर्वक मस्तक रखा। || | सासू ने भी 'तथास्तु' कहकर आशीर्वाद दिया। | भरतेश की माता महल से जब बाहर निकली उस समय उन्हें दो कौवे देखने में आये। आकाश प्रदेश में सामने एक गरुड़ बराबर भाग रहा था। नायक ने समय की अनुकूलता (शुभ शकुन) देखकर भरतेश को | इशारे से बतलाया। भरतेश भी अन्दर-अन्दर से ही हंसते हुए एवं बहुत उत्साह के साथ परमात्मा का स्मरण करते हुए नगर के मध्यस्थित जिनमन्दिर में आये। मंत्री बुद्धिसागर ने प्रार्थना की कि "स्वामिन्! पूजा का कार्य बहुत विधिपूर्वक सम्पन्न किया गया। मुनियों को आहारदान नवधा भक्तिपूर्वक दिया गया। श्री ऋषभदेव मुनिराज की पूजा बहुत वैभव के साथ की गई है। प्रतिप्रदा से लेकर दशमी तक अद्वितीय उत्साह के साथ आपने जो पूजा कराई है, वह पूजा अब इस लोक में आपकी पूजा करायेगी, इसमें कोई संदेह नहीं । स्वामिन्! धर्मपूर्वक राज्यपालन करने की पद्धति को आपके सिवाय और कौन जान सकता है?" तत्पश्चात् भरत ने जिससमय दिग्विजय की तैयारी की, उसीसमय शरदऋतु भी आ गई, जो कि भरत की विजयश्री की प्रतीक थी। शरदऋतु के आते ही नदियों के किनारे हंसवत् स्वच्छ हो जाते हैं। हंस श्वेत होते हैं और शरदऋतु की चांदनी की शोभा भी श्वेत होती है, नदियों के निर्मल जल से प्रवाहित किनारे और शरदऋतु की श्वेत चाँदनी की शोभा देखकर भरतजी हर्षित हुए। भरतेश्वर दिग्विजय हेतु योग्य सारथी के रथ पर आरूढ़ हुए। प्रस्थान के समय होनेवाले जय-जय आदि शुभ शब्दों के द्वारा उनका अभिनन्दन किया गया। महाराजा भरत ने छहखण्ड पर विजय प्राप्त करने के लिए सेना और सेनापति राजा जयकुमार के साथ प्रस्थान किया। सबसे पहले पैदल चलनेवाले सैनिकों का समूह सर्ग था, उसके बाद घुड़सवार सैनिक थे, फिर क्रम से रथ एवं हाथी के सवार सैनिक चल रहे थे। १३
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
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