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________________ १६६|| के चरण को नमस्कार किया। यशस्वती देवी ने भी आशीर्वाद दिया कि “देवियो ! तुम हमारे पुत्र के साथ | सकुशल लौटना। दिग्विजय प्रयाण में तुम्हें कोई कष्ट नहीं होगा - ऐसी हमारी मंगल कामना है।" तब उन बहुओं ने सासू माँ से कहा “माता! हमें इस समय योग्य सदुपदेश दीजिये" - यह सुनकर यशस्वती देवी कहने लगी कि “विवेकी भरत की स्त्रियों को मैं क्या उपदेश दे सकती हूँ। आप लोगों के पति की बुद्धिमत्ता लोक में सर्वत्र विश्रुत है। अपने पति की आज्ञानुसार चलना यही कुलस्त्रियों का धर्म है।" | इतने में सभी शीलवतियों ने सासू माँ से प्रार्थना की - "आज हम सब पति के साथ दिग्विजय विहार में जा रही हैं। ऐसी अवस्था में हमें नित्य प्रति आपके चरणों का दर्शन नहीं मिल सकता। इसलिए पुनः जबतक आकर आपके पूज्यपादों का दर्शन हमे हो तबतक कुछ न कुछ व्रत लेने की आज्ञा दीजियेगा।" माता की आज्ञानुसार सभी सतियों ने भिन्न-भिन्न प्रकार के व्रत लिये। किसी ने भोजन के रसों में किसी एक रस त्याग का नियम लिया। किसी ने पुष्पों में अमुक पुष्प का मुझे त्याग रहे - इसप्रकार का व्रत लिया। किसी ने तांबूल का त्याग किया। किसी ने वस्त्रों का नियम किया। एक स्त्री ने मल्लिका पुष्प का त्याग किया। एक ने जाई पुष्प का त्याग किया। एक सती ने दूध का त्याग किया, एक ने केले का त्याग किया। एक ने फैणी का त्याग किया। दूसरी ने गोरोचन और तीसरी ने कस्तूरी का त्याग किया। एक स्त्री ने रेशमी वस्त्रों का त्याग किया। एक ने मोती के आभूषणों का त्याग किया। इसप्रकार अनेक स्त्रियों ने तरह-तरह से अनेक नियम लिये। यह सब मर्यादित नियमव्रत है, यम नहीं; क्योंकि सासू माँ के पुर्नदर्शनपर्यंत इनका कालनियम है। बहुओं की भक्ति को देखकर माता यशस्वती को बहुत हर्ष हुआ और कहने लगी कि "बहुओ! आप लोग परदेश को गमन कर रही हैं, इसलिए प्रयाण के समय व्रतों में बंधने की क्या आवश्यकता है ? आप लोग वैसे ही जावे।" बहुओं ने कहा - "माता! यद्यपि षट्खण्ड हमारे ही हैं, वह परदेश नहीं है, फिर भी इन व्रतों की हमें FACEF सर्ग १३
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
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