SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ EFFFF 'मैंने जैसा सुना है' यह कहकर चार ज्ञान के धारी और द्वादशांग के ज्ञाता गणधरदेव ने भी अपनी लघुता || प्रगट की है। इस कथन से हमें अपने तुच्छ ज्ञान का गर्व छोड़ने की प्रेरणा तो मिलती ही है, साथ ही अपने गुरु का नाम गोपन न करने की शिक्षा भी मिलती है। श्रुतस्कन्ध के चार महा अधिकार हैं; जिन्हें चार अनुयोग कहा है। उनमें से पहले प्रथमानुयोग में तीर्थंकर | आदि ६३ शलाका पुरुषों के चरित्र एवं जीवनवृत्त का वर्णन है। दूसरे अनुयोग का नाम करणानुयोग है, इसमें तीनों लोकों का वर्णन ताम्रपत्र पर लिखे अनुसार लिखा होता है। तीसरा अधिकार चरणानुयोग है, इसमें मुनि-श्रावक के चारित्र की शुद्धि का कथन होता है। चौथा महाधिकार द्रव्यानुयोग का है, इसमें प्रमाण-नय-निक्षेप तथा सत्संख्याक्षेत्रस्पर्शनकाल अन्तर आदि एवं निर्देश, स्वामित्व, साधन, अधिकरण आदि के द्वारा द्रव्यों का निर्णय किया जाता है। शास्त्रों को समझाने के कुछ उपक्रम हैं। वर्ण्य विषय या पदार्थों को श्रोताओं की बुद्धि में बैठा देना, उन्हें समझा देने को उपक्रम कहते हैं, उपक्रम का दूसरा नाम उपोद्घात भी है। इस उपक्रम के पाँच प्रकार हैं - (१) आनुपूर्वी, (२) नाम, (३) प्रमाण, (४) अभिधेय और (५) अर्थाधिकार। चार अनुयोगों या इसके अन्तर्गत किसी भी विषय का क्रम से कथन करना 'आनुपूर्वी' है। ग्रन्थ के नाम को 'नाम' कहते हैं। 'प्रमाण' में ग्रन्थ के शब्दों, पदों, श्लोकों आदि की संख्या का निर्देश होता है। 'अभिधेय' में वर्ण्य विषय आता है जैसे कि आदिपुराण का अभिधेय संपूर्ण द्वादशांग है; क्योंकि इसके बाहर न तो कोई विषय ही शेष है और न शब्द ही शेष बचे हैं। सम्यग्दर्शन-सम्यग्ज्ञान-सम्यक्चारित्ररूप तो मोक्षमार्ग में मोक्षरूप फल तथा धर्म, अर्थ, काम आदि पुरुषार्थ तथा त्रेसठ शलाका पुरुष इस ग्रन्थ का अभिधेय है। इन्हीं की संख्या के अनुसार महापुराण के ६३ अधिकार रखे। हम उन्हें प्रस्तुत ग्रन्थ 'शलाका पुरुष' में संक्षिप्त रुचि पाठकों को ध्यान में रखकर २४ पर्यों में रखने का प्रयत्न करेंगे; क्योंकि तीर्थंकरों के अधिकारों के मध्य चक्रवर्ती आदि के उप-कथानक आ जाते हैं, फिर भी अनेक उपकथायें हैं, जिन्हें पृथक् | से देना पाठकों को सुविधाजनक रहेगा।
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy