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________________ FE FE में न अटक कर सीधे धर्मसभा में चले जाते हैं। जिनका संसार अभी बहुत बाकी है - वे अपनी रुचि के अनुसार नाटक आदि देखकर बाग-बगीचों में घूमकर बीच से वापिस लौट आते हैं। तीर्थंकर की धर्मसभा और इन्द्र जैसे समर्थ व्यवस्थापक के रहते कोई निराश क्यों लौटे? अत: जो उचित मनोरंजन के साधन संभव होते हैं, इन्द्र उनकी व्यवस्था कर देता है। समवसरण की रचना इन्द्र की व्यवस्था | है। तीर्थंकर का उसमें कुछ भी हस्तक्षेप नहीं; क्योंकि वे तो वीतरागी हो चुके हैं, अत: किसी से कुछ प्रयोजन नहीं। परन्तु यह सब तीर्थंकर पुण्य प्रकृति के फल में होता है। तीर्थंकर तो धर्मसभा में अपने सिंहासन पर भी आसन से चार अंगुल ऊपर ही रहते हैं। आज के वैज्ञानिकयुग में इसप्रकार की व्यवस्था अनेक लोक सभाओं में हो गई है। अत: इन्द्र जैसे साधन-सम्पन्न और वैज्ञानिक प्रज्ञा के धनी द्वारा यदि यह सब व्यवस्था हो तो असंभव नहीं लगती। ये पंचकल्याणक कल्याणक' कहलाते ही इसीकारण हैं, कि ये भव्य जीवों को कल्याण में निमित्त बनते हैं। शास्त्रों में इन पंचकल्याणकों के दर्शन को सम्यग्दर्शन का निमित्त कहा है। अब देखना यह है कि समोसरण का वह कौन-सा अंग है जो सम्यग्दर्शन में निमित्त बनता है? सम्यग्दर्शन की प्राप्ति के पहले अनिवार्यरूप से होनेवाली पाँच लब्धियाँ हैं, उनमें एक देशनालब्धि है। तीर्थंकर भगवान की देशना को ही सम्यग्दर्शन में निमित्त कहा है। ००० सर्ग १०
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
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